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________________ २५६ सर्वदर्शनसंग्रहे Like flies to the wanton lads, we are all to the gods, They kill us for their sport. ___'चंचल बालकों के लिए मक्खियों का जो महत्त्व है वही देवताओं के लिए हमारा है। वे खेल-खेल में हमें मार डालते हैं ।' किन्तु शिव का कल्याणकारी रूप भी है। (२. पाशुपत-सूत्र को व्याख्या-गुरु का स्वरूप ) तत्रेदमादिसूत्रम् – 'अथातः पशुपतेः पाशुपतयोगविधि व्याख्यास्याम' इति। अस्यार्थः-अत्राथशब्दः पूर्वप्रकृतापेक्षः। पूर्वप्रकृतश्च गुरुं प्रति शिष्यस्य प्रश्नः । गुरुस्वरूपं गणकारिकायां निरूपितम् १. पञ्चकास्त्वष्ट विज्ञेया गणश्चैकस्त्रिकात्मकः । वेत्ता नवगणस्यास्य संस्कर्ता गुरुरुच्यते ।। २. लाभा मला उपायाश्च देशावस्थाविशुद्धयः । दीक्षाकारिबलान्यष्टौ पञ्चकास्त्रीणि वृत्तयः ।। 'तिस्रो वृत्तयः' इति प्रयोक्तव्ये 'त्रीणि वृत्तयः' इति च्छान्दसः प्रयोगः । उस ( पाशुपत-शास्त्र) का यह पहला सूत्र है-'अब इसलिए पशुपति के पाशुपतशास्त्र के योग और विधि की व्याख्या करेंगे।' इसका अर्थ इस प्रकार है---यहाँ ‘अथ' शब्द पहले के कुछ प्रसंग का द्योतक है । पहले का कुछ प्रसंग यही है कि गुरु के प्रति शिष्य का प्रश्न हो चुका है। [ प्रश्न यही है कि त्रिविध दुःखों का सर्वथा विनाश कैसे हो? वह दुःखान के विषय का प्रश्न है । ] गुरु का स्वरूप गणकारिका में निश्चित किया गया है-'आठ पंचक ( पांच-पांच अवान्तर भेदों से युक्त गण ) जानने योग्य हैं और एक गण तीन अवान्तर भेदों का है। इन नव गणों का ज्ञाता और जो संस्कार करनेवाला हो वह गुरु कहलाता है ॥ १॥ लाभ, मल, उपाय, देश, अवस्था, विशूद्धि, दीक्षाकारी और बल ये आठ पंचक (प्रत्येक के पाँच भेद ) हैं । वृनियां ( कार्य ) नीन हैं ॥ २ ॥ मूलश्लोक में 'तिस्रो वृत्तयः' ( दोनों स्त्रीलिङ्गशब्द ) का प्रयोग करना चाहिए किन्नु ‘त्रीणि ( नपुं० ) वृत्तयः (स्त्री० ) प्रयोग है । यह वैदिक व्यत्यय का उदाहरण है। [ 'व्यन्ययोबहुलम्' ( पा० मू० ३।१।८५) में लिङ्ग का व्यत्यय । विशेष-नव गणों का ज्ञाता गुरु है। इन गणों में प्रयोग में प्रथम आठ पंचक ( Pentads ) हैं अर्थात् इनमें प्रत्येक के पाँच-पाँच अवानर भेद हैं। नवें गण को त्रिक कहते हैं क्योंकि इसके तीन ही भेद हैं । इनकी गणना करें (१) लाभ ( Acquisition )--ज्ञान, तपस्, नित्यत्व, स्थिति, शुद्धि । ( २ ) मल ( Impurity ).-मिथ्याज्ञान, अधर्म, आसक्तिहेतु, च्युति, पशुत्वमूल । ( ३ ) उपाय ( Expedient )-वासचर्या, जप, ध्यान, रुद्रस्मृति, प्रपत्ति । ( ४ ) देश ( Locality )-गुरु, जन, गुहादेश, श्मशान, रुद्र ।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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