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________________ पूर्णप्रज्ञ-वर्शनम् २५३ तस्मात्सर्वस्य शास्त्रस्य विष्णुतत्त्वं सर्वोत्तममित्यत्र तात्पर्यमिति सर्वं निरवद्यम् । इति श्रीमत्सायण माधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे पूर्णप्रज्ञदर्शनम् । 6TED आता है - 'देव ( वायु ) इस पद्य का अर्थ निम्न श्रुतियों का सम्यक् मनन करने से का वह दर्शनीय तेज ( भर्गः ) शारीरिक व्यवहार के लिए एवं बलप्राप्ति के लिए ( बट् ) इस प्रकार से ( इत्था इत्थं ) धारण किया जाता है, क्योंकि वह बल से ( सहसः ) ही उत्पन्न हुआ है ।' ऋ० १।१४१।१ ) । इसलिए सभी शास्त्रों का तात्पर्य यही है कि विष्णुतत्त्व ही सबसे अच्छा है । इस प्रकार सब कुछ ठीक (निर्दोष ) है | = इस प्रकार श्रीमान् सायण माधव के सर्वदर्शनसंग्रह में पूर्णप्रज्ञ दर्शन समाप्त हुआ । इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शनसंग्रहस्य प्रकाशाख्यायां व्याख्यायां पूर्णप्रज्ञदर्शनमवसितम् ॥ 100
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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