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________________ ( ४८ ) १६६ ६ रामानुज द्वारा इसका खण्डन ७ अज्ञान को भावरूप मानने में अनुमान और उसका खण्डन १६८ क. उपर्युक्त अनुमान का प्रत्यनुमान १६९ ८ भावरूप अज्ञान मानने में श्रुति प्रमाण नहीं है १७१ ९ अज्ञान की सिद्धि अर्थापत्ति से भी नहीं-'तत्त्वमसि' का अर्थ १७३ १० 'तत्त्वमसि' में लक्षणा-अद्वैत-पक्ष १७४ ११ रामानुज का उत्तर-पक्ष १७५ १२ सभी शब्द परमात्मा के वाचक हैं १७७ १३ निविशेष ब्रह्म की अप्रामाणिकता १८१ १४ प्रपंच की सत्यता १८२ १५ निर्गुणवाद और नानात्वनिषेध की सिद्धि १८५ १६ रामानुज-मत की तत्त्वमीमांसा १८६ क. चित्, अचित और ईश्वर के स्वभाव १८६ ख. जीव का वर्णन १८९ ग. अचित् का निरूपण १९१ १७ ईश्वर का निरूपण-उनकी पांच मूर्तियां १६१ १८ उपासना के पाँच प्रकार और मुक्ति १९४ १९ ब्रह्मसूत्र की व्याख्या-प्रथम सूत्र १९५ क. कर्म के साथ ब्रह्म का ज्ञान मोक्ष का साधन है १९७ २० ब्रह्म-जिज्ञासा का अर्थ २०० २१ भक्ति का निरूपण २२ द्वितीय सूत्र--ब्रह्म का लक्षण २०६ . २३ तृतीय सूत्र--ब्रह्म के विषय में प्रमाण २४ चतुर्थ सूत्र---शास्त्रों का समन्वय २०६ (५) पूर्णप्रज्ञ-दर्शन (द्वैत-वेदान्त) २११-२५३ १ द्वैतवाद की रामानुजमत से समता और विषमता २११ २ द्वैतवाद के तत्त्व-भेद की सिद्धि २१२ ३ प्रत्यक्ष से भेद-सिद्धि-शंका २१३ क. प्रत्यक्ष से भेद-सिद्धि--समाधान ४ धर्मभेदवादी का समर्थन--भेद की सिद्धि २२० ५ अनुमान-प्रमाण से भेद की सिद्धि २२३ ६ ईश्वर की सेवा के नियम २२५ क. नामकरण और भजन २२७ २०४ २०७ २१५
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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