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३ जनों द्वारा उपर्युक्त मत का खंडन ४ क्षणिकवाद के खंडन की दूसरी विधि ५ क्षणिकत्व-पक्ष में ग्राह्म-ग्राहक-भाव न होना ६ ज्ञान का साकार होना और दोष ७ अर्हत्-मत की सुगमता, अर्हत् का स्वरूप ८ अर्हत के विषय में विरोधियों की शंका
१०४ ९ अर्हत् पर मीमांसकों की शंका का समाधान
१०७ १० नैयायिकों की शंका और उसका उत्तर
११० ११ सावयवत्व के पांच विकल्प और उनका खण्डन
१११ १२ ईश्वर के कर्ता बनने पर आपत्ति
११५ १३ सर्वज्ञ की सिद्धि १४ त्रिरत्नों का वर्णन-सम्यक दर्शन
११७ १५ सम्यक् ज्ञान और उसके पांच रूप
११६ १६ सम्यक् चारित्र और पांच महाव्रत
१२१ १७ प्रत्येक व्रत की पांच-पांच भावनायें
१२३ १८ जैन तत्त्व-मीमांसा--दो तत्त्व १९ पांच तत्त्व-दूसरा मत
१२६ २० काल भी एक द्रव्य है
१३३ २१ सात तत्त्व-तीसरा मत
१३५ क. बन्ध का निरूपण
१३७ २२ बन्धन के कारण क. बन्धन के भेद
१३९ २३ संवर और निर्जरा नामक तत्त्व
१४२ क. निर्जरा
१४३ २४ मोक्ष का विचार २५ जैन न्यायशास्त्र-सप्तभंगीनय
१४६ २६ जनमत-संग्रह
१५३ (४) रामानुज-दर्शन ( विशिष्टाद्वैत-वेदान्त) १५५-२१० १ अनेकान्तवाद का खण्डन
१५५ २ सप्तभंगीनय की निस्सारता
१५८ ३ जीव के परिमाण का खण्डन
१५८ ४ रामानुज-दर्शन के तीन पदार्थ
१६१ ५ अद्वत-वेदान्त का इस विषय में पूर्वपक्ष
१६१ क. रामानुज का उत्तर-पक्ष, अद्वतियों की अविद्याका पूर्व पक्ष १६२
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