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सर्वदर्शनसंग्रहे
करें' ( वही, ४।४।२१ ), [श्रवण और मनन के द्वारा ] जानकर ही विशेष ज्ञान प्राप्त करें' ( छा० ८७१ ) इत्यादि श्रुतिवाक्यों से [ यह सिद्ध होता है कि ज्ञान का अर्थ श्रवण, मनन, उपासना आदि है ] ।
यहाँ 'श्रोतव्य' शब्द व्याख्यात्मक है। अध्ययन का विधान करनेवाले वाक्य ( स्वाध्यायोऽध्येतव्यः ) से अङ्गों के साथ [ वेदों के ] स्वाध्याय का ग्रहण होता है ( ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च ) । इसलिए जो पुरुष वेदों का अध्ययन कर लेता है वह अपने आप ( स्वरसतः ) ही वेदों को सप्रयोजन ( सार्थक Useful ) समझते हुए, उनमें अर्थ देखकर, अर्थ का निर्णय करने के लिए श्रवण ( गुरुमुख से वेदार्थ को सुनने ) में प्रवृत्त होता है । अतः [ ज्ञान में श्रवण की ] प्राप्ति होती है । [ ज्ञान में श्रवण का अर्थ कैसे होता है, इसे ही समझा रहे हैं । 'ब्राह्मणेन निष्कारणो०' वाले उद्धरण में छह अङ्गों के साथ वेदों के अध्ययन और ज्ञान का विधान है। अध्ययन (अक्षर-ग्रहण ) के बाद जब वेदार्थज्ञान की आवश्यकता होती है तब गुरुमुख से सुनना ही पड़ता है, अतः श्रवण के बिना ज्ञान नहीं होता।] ___ मन्तव्य इति चानुवादः । श्रवणप्रतिष्ठार्थत्वेन मननस्यापि प्राप्तत्वात् । अप्राप्ते शास्त्रमर्थवदिति न्यायात् । ध्यानं च तलधारावदविच्छिन्नस्मृतिसन्तानरूपम् । 'ध्रुवा स्मृतिः स्मृतिप्रतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष' इति ध्रुवायाः स्मृतिरेव मोक्षोपायत्वश्रवणात् । सा च स्मृतिदर्शनसमा नाकारा ।
'मनन करना चाहिए' यह भी व्याख्यात्मक शब्द है । श्रवण को दृढ़ता से प्रतिष्ठित करने के लिए मनन की प्राप्ति भी आवश्यक है । इसके लिए एक नियम है कि जब तक [ मनन की ] प्राप्ति नहीं होती, तब तक शास्त्र सार्थक (केवल अर्थयुक्त, विशेष कुछ नहीं) रहता है । तेल की धारा के समान स्मरण की अविच्छिन्न ( Unbroken ) परम्परा को ध्यान कहते हैं । [ जब स्मृति की परम्परा बीच में न टूटे, चाहे दूसरे प्रकार की-विजातीय स्मृतियाँ लाख ज्यवधान डालती हों, तब उसे ध्यान ( Meditation ) कहते हैं।] 'ध्रुवा स्मृति' ( निरन्तर परमात्मा का ध्यान) वह है जिसमें स्मृति निरन्तर रहती है (प्रतिलम्भ ), और सभी ग्रन्थियों ( कर्मों, पापों, संशयों ) का मोक्ष हो जाता है-इस प्रकार ध्रुवा स्मृति ( Continued Remembrance ) को ही मोक्ष का उपाय कहते हैं, ऐसा सुना जाता है । यह (ध्रुवा ) स्मृति दर्शन के ही समान आकार धारण करती है ( दर्शन शब्द से ध्यान का भी बोध हो जाता है । )
विशेष-इस प्रकार यह सिद्ध किया गया कि दर्शन या ज्ञान में श्रवण, मनन और . ध्यान तीनों चले आते हैं। दर्शन और ध्यान में एकता का प्रदर्शन करनेवाला श्लोक नीचे दिया जा रहा है।