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________________ समय में विद्यमान सारे दार्शनिक सम्प्रदायों के पूरे परिप्रेक्ष्य में की जाय । अतः 'आम्राश्चः सिक्ताः पितरश्च प्रीणिताः' के अनुसार एक ही साथ दो-दो काम हो गये-दर्शनों का संग्रह भी हो गया और उनके बीच अद्वैत-वेदान्त की क्या महत्ता है, यह भी जान गये । अन्त में हम प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक माधवाचार्य' के विषय में भी विचार कर लें । दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के किनारे पम्पा-सरोवर के समीप विजयनगर में एक सुप्रसिद्ध साम्राज्य था जिसमें प्रायः १३५५ ई० के आसपास में महाराज बुक्क सम्राट् हुए थे । उक्त साम्राज्य की स्थापना महाराज हरिहर प्रथम ने माधवाचार्य की ही प्रेरणा से की थी। माधवाचार्य इन दोनों राजाओं के यहां मुख्य मन्त्री के पद पर सुशोभित थे । इनका परिवार बहुत प्रसिद्ध था क्योंकि विद्या के क्षेत्र में वह बहुत आगे बढ़ा-चढ़ा था । वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकर्ता सायणाचार्य इसी वंश में हुए थे। इस वंश का नाम ही सायण-वंश था। सायण और माधव की रचनाओं की तुलना करने से हमें मालूम होता है कि माधवाचार्य सायण के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम मायण और माता का नाम श्रीमती था। ये बौधायन-सूत्र के मानने वाले यजुर्वेदी ब्राह्मण थे। ये सूचनायें माधवाचार्य ने पराशर-स्मृति की अपनी व्याख्या में प्रस्तुत की है । माधवाचार्य को एक दूसरे माधव से भी अभिन्न समझने की भूल लोगों ने की है । माधव नाम के एक मन्त्री होने की सूचना १३४७ ई० के शिखालेख में मिलती है जिनकी मृत्यु १३६१ ई० के बाद हुई थी। इस प्रकार प्रायः ४५ वर्षों की अवधि तक इन्होंने मन्त्री का कार्य उत्तरदायित्वपूर्वक संभाला था। ये अद्वितीय योद्धा थे क्योंकि इनके लिखे लेखों में 'भूवनैकवीरः' का विरुद मिलता है । पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित कोंकण-प्रदेश में तुरुष्कों । ) का उपद्रव जोर-शोर से चल रहा था। उन्होंने उसकी राजधानी गोमन्तक (आधुनिक गोआ) के धार्मिक स्थानों को नष्ट-भ्रष्ट करना प्रारम्भ कर दिया था। माधव ने उनसे लोहा लिया और उन्हें परास्त करके उस स्थान पर फिर से धर्म की प्रतिष्ठा की। महाराज बुक्क माधव के इस कार्य से इतना प्रसन्न हुए कि उन्हें वनवासी अर्थात् जयन्तीपुर का शासक बना दिया। अपने प्रशासन से माधव ने प्रजा का हृदय जीत लिया। गोआ के शासक के रूप में १३१२ शक संवत् ( १३९० ई० ) में उन्होंने कुचर नामक गांव अग्रहार (जागीर) में ब्राह्मणों १. दे० बलदेव उपाध्याय, आचार्य सायण और माधव, पृ० १३३ तथा आगे।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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