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सर्वदर्शनसंग्रहे
काही विकल्प सम्भव है। जो वस्तु पहले से सिद्ध है, वह तो किसी एक प्रकार से सिद्ध होती है, उसमें विकल्प कहाँ से आयेंगे ? सत्ता सिद्ध वस्तु ( Completed action ) है, उसका कोई एक ही प्रकार हो सकता है- 'जुहोति' साध्य ( क्रिया ) है जिसके लिए विकल्प दिये जा सके । ]
न च ' अनेकान्तं जगत्सर्वं हेरम्बनरसिंहवत्' इति दृष्टान्तावष्टम्भवशादेष्टव्यम् । एकस्मिन्देशे गजत्वं सिंहत्वं वाऽपरस्मिन्नरत्वमिति देशभेदेन विरोधाभावेन तस्यैकस्मिन्देश एव सत्त्वासत्त्वादिनाऽनेकान्तत्त्वाभिधाने दृष्टान्तानुपपत्तेः । ननु द्रव्यात्मना सत्त्वं पर्यायात्मना तदभाव इत्युभयमप्युपपन्नमिति चेत्, मैवम् -- कालभेदेन हि कस्यचित्सत्त्वमसत्त्वं च स्वभाव इति न कश्चिद्दोषः ।
निम्नलिखित दृष्टान्त को आधार ( अवष्टम्भ ) मानकर भी यह सिद्ध नहीं हो सकता - 'समूचा संसार अनेकान्त ( Multiform ) है जिस प्रकार गणेश ( गज का सिर और मनुष्य की धड़ ) और नरसिंह ( सिंह का सिर और मनुष्य की धड़ ) है ।' यह दृष्टान्त हमारी प्रकृत समस्या में लग नहीं सकता, क्योकि इस दृष्टान्त में तो एक देश ( Part, खंड, भाग ) में गज या सिंह का स्वरूप है, दूसरे भाग में मनुष्य का स्वरूप है— देशों का अन्तर है इसलिए विरोध की कल्पना नहीं हो सकती । परन्तु अनेकान्तवाद में एक ही भाग में सत्त्व, असत्त्व आदि ( धर्मों को ) मानकर अनेकान्त सत्ता स्वीकृत की जाती है । [ दृष्टान्त में देशभेद है, अतः दो पक्ष सम्भव हैं; जब कि अनेकान्तवाद में देश का बिना भेद किये ही एक जगह कई पक्ष मान लेते हैं, जो कभी सभव नहीं । ]
यदि कोई यह कहे कि किसी द्रव्य के रूप में सत्ता मानें ( जैसे मिट्टी की सत्ता ) और उसके पर्यायों ( विभिन्न अवस्थाओं, जैसे- -मिट्टी का पिंड, खप्पड़, घट आदि ) के रूप में असत्ता मानें और इस प्रकार दोनों को ही सिद्ध कर डालें, तो [ हमारी आपत्ति है कि ] ऐसा नहीं होगा - काल के भेद से किसी वस्तु का सत् ( Existent ) और असत् ( Non-existent ) होना तो उसका स्वभाव ही है, इसमें कोई दोष नहीं है । [ मिट्टी के पिण्ड में मिट्टी की सत्ता है, घट आदि की असता; उसी प्रकार घट की अवस्था में मिट्टी ( द्रव्य ) की सत्ता है, कपाल ( Potsherd ) आदि की असत्ता । आशय यही है कि मूल द्रव्य की सत्ता किसी भी अवस्था ( पर्याय ) में रहती है, अन्य पर्यायों की नहीं । लेकिन यहाँ काल का भेद स्पष्ट है । मृत्पिण्ड के काल में घट नहीं, घट के काल में कपाल नहीं; किसी काल में एक की सत्ता और दूसरी की असत्ता होती है । यह तो अत्यन्त स्वाभाविक है । फलितार्थ यह हुआ कि देश ( Space ) और काल ( Time ) के भेद से असत् और सत् को स्वीकार कर सकते हैं। कोई वस्तु सत् भी है असत् भी, किन्तु कैसे ? देश-भेद या काल-भेद से । यह नहीं कि अनेकान्तवादी की तरह एक ही काल और एक ही देश में वस्तु के कई प र विरोधी धर्म मान लें । ]
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