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रामानुज-दर्शनम्
तत्त्वत्रयं चिदचिवीश्वररूपमस्याविद्याकृतं न तु जगत्सविशेष ईशः । भक्तिश्च तत्र फलितेत्युपदेशकाय रामानुजाय सततं प्रणतोऽस्मि तस्मै ।-ऋषिः ।
( १. अनेकान्तवाद का खण्डन ) तदेतदाहतमतं प्रामाणिकगर्हणमर्हति। न ोकस्मिन्वस्तुनि परमार्थे सति परमार्थसतां युगपत्सदसत्त्वादिधर्माणां समावेशः सम्भवति। न च सदसत्त्वयोः परस्परविरद्धयोः समुच्चयासम्भवे विकल्पः किं न स्यादिति वदितव्यम् । क्रिया हि विकल्प्यते न वस्त्विति न्यायात् ।
जैनों का यह ( अनेकान्तवाद का ) सिद्धान्तवाद कतिपय प्रमाणों से काटा ( निन्दित किया) जा सकता है। इसका कारण यह है कि वस्तु में एक ही पारमार्थिक सत्ता ( Ultimate reality ) हो सकती है, उस सत्ता में एक ही साथ सत्ता, असत्ता आदि ( सात ) धर्मों से युक्त पारमार्थिक सत्ताओं का समावेश नहीं हो सकता । [पारमार्थिक या अन्तिम दशा में वस्तु का एक धर्म ही, जैसे सत्ता या असत्ता, स्थिर किया जा सकता है। अनेकान्तवादियों की तरह एक ही साथ सात-सात धर्मों को मान लेना असम्भव है।] ___कोई यह नहीं कह सकता कि सत् और असत् चूंकि परस्पर विरोधी हैं और उनका समुच्चय ( Combination ) होना सम्भव नहीं है, इसलिए उस प्रकार के धर्मों में विकल्प क्यों नहीं होगा? विकल्प क्रिया का ही होता है वस्तु का नहीं—ऐसा नियम है, अतः विकल्प नहीं मान सकते। [ अनेकान्तवादी की ओर से इस उत्तर की अपेक्षा है कि विकल्प द्वारा विभिन्न धर्मों का एकत्र समावेश हो सकता है। जहाँ समुच्चय सम्भव नहीं है वहा विकल्प किया जाता है। उदाहरण के लिए-'उदिते जुहोति' और 'अनुदिते जुहोति' में विकल्प है। पहले वाक्य में सूर्योदय के बाद होम करने का विधान है, दूसरे वाक्य में सूर्योदय के पूर्व ही होम करना विहित है। उदित और अनुदित दोनों होम एक साथ नहीं हो सकते, अत: यहाँ विकल्प करते हैं कुछ लोग सूर्योदय के बाद करें, कुछ लोग पहले । यहाँ भी उसी प्रकार क्यों नहीं मान लें ? उत्तर यों दे सकते हैं---जो वस्तु साध्य होती है उसी में कर्ता, कर्म, अधिकरण आदि बदल-बदलकर विकला कर सकते हैं, क्रिया ( साध्य )