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________________ ( ३८ ) न्याय-वैशेषिक दर्शनों के तत्त्व इतने प्रसिद्ध हैं जितने किसी दर्शन में नहीं । वस्ततः उनका दर्शन ही तत्त्व-विचार-शास्त्र है। वैशेषिकों के यहाँ सात पदार्थ स्वीकार किये गये हैं जिनमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, ये छह भावात्मक ( Positive ) हैं और अभाव नाम का सप्तम पदार्थ भी स्वीकृत है । नैयायिकों ने प्रमाण-प्रमेय आदि सोलह पदार्थों का निरूपण किया है । यहाँ पर यह ध्येय है कि नैयायिकों ने अनुमान के लिए पांच अवयवों की आवश्यकता मानी है । वे हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन । ये अवयव प्रायः सभी दार्शनिकों को स्वीकृत हैं। फिर भी कुछ दार्शनिकों ने अपने-अपने दृष्टिकोणों से इनका चयन किया है। बौद्ध लोग उदाहरण और उपनय से ही संतुष्ट है । मीमांसक लोग तीन अवयवों को मानते हैं--प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण । अद्वैत-वेदान्ती केवल तीन अवयवों को लेते हैं चाहे प्रथम तीन या अन्तिम तीन । रामानुज और मध्य-सम्प्रदाय का कोई नियम नहीं है। कभी पांचों से, कभी केवल तीन से और कभी उदाहरण और उपनय, इन दो अवयवों से ही काम लेते हैं । तात्पर्य यह हुआ कि उदाहरण तो कोई भी छोड़ता ही नहीं। मीमांसा-शास्त्र में चूँकि वाक्यार्थ-विचार की प्रधानता है इसलिये तत्त्व का विचार हमें दिखलाई नहीं पड़ता किन्तु समवाय आदि कुछ पदार्थों का उनके द्वारा खण्डन किया जाना देखकर हमारा अनुमान है कि वैशेषिकों की तरह कुछ पदार्थों को वे अवश्य मानते हैं । वैयाकरण लोगों को शब्दार्थ के विचार से अवकाश ही कहाँ है कि तत्त्व पर विचार करें ? किन्तु वास्तव में उन्होंने विचार किया है । तत्त्व-विचार की दृष्टि से वे प्रत्यभिज्ञा, मीमांसा, वैशेषिक और अद्वैतवेदान्त के बिन्दुओं से बने हुए वर्ग के बीच अवस्थित हैं। द्रव्य, गुण, कर्म ( क्रिया ) और सामान्य (जाति) इन चार पदार्थों को मानते हुए वे शब्द-ब्रह्म । को ही एकमात्र तत्त्व स्वीकार करते हैं । सांख्य-दर्शन के चार प्रकार के तत्त्व हैं-प्रकृत्यात्मक, विकृत्यात्मक, उभयात्मक और अनुभयात्मक । इनका विचार इस ग्रन्थ में विस्तृत रूप में किया गया है । योग-शास्त्र इससे पृथक् नहीं जाता। अद्वैत-वेदान्त में पदार्थ एकात्मक है । वह आत्मा या ब्रह्म-स्वरूप है । द्वैत की प्रतीति तो अनादि अविद्या के कारण कल्पित है । तो, दृक् और दृश्य के भेद से दो पदार्थ हए। दृक्पदार्थ के तीन भेद हैं-ईश्वर, जीव और साक्षी । अज्ञान . उपाधि 1. युक्त ईश्वर है जिसके ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीन भेद हैं। अन्तःकरण और उसके संस्कार से युक्त अज्ञान वाला पदार्थ जीव है। ईश्वर या जीव ही
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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