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सर्वदर्शनसंग्रहे
( २२. बन्धन के कारण )
तत्र कषायग्रहणं सर्वबन्धहेतूपलक्षणार्थम् । बन्धहेतून्पपाठ वाचकाचार्यः मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ( त० सू० ८1१ ) इति ।
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यहाँ ( उपर्युक्त उद्धरण में ) 'कषाय' शब्द बन्धन के सारे कारणों का उपलक्षण ( बाधक ) है । वाचकाचार्य ( उमास्वाति ) ने बन्ध के हेतुओं को इस प्रकार निरूपित किया है - मिथ्यादर्शन ( False intuition झूठा विश्वास ), अविरति ( Non-indifference ), प्रमाद ( लापरवाही Garelessness ), कषाय ( पाप Sin ) तथा योग ( Influx ) —बन्ध के हेतु हैं ( त० सू० ८1१ ) |
मिथ्यादर्शनं द्विविधं - मिथ्याकर्मोदयात्परोपदेशानपेक्षं तत्त्वाश्रद्धानं नैसर्गिकमेकम् । अपरं परोपदेशजम् । पृथिव्यादिषट् कोपादानं षडिन्द्रियासंयमनं चाविरतिः । पञ्चसमितित्रिगुप्तिष्वनुत्साहः प्रमादः । कषायः क्रोधादिः । तत्र कषायान्ताः स्थित्यनुभवबन्धहेतवः प्रकृतिप्रदेशबन्ध हेतुर्योग इति विभागः ।
[क] मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है -- मिथ्या कर्मों का उदय होने पर, दूसरों के उपदेश के बिना ही प्राकृतिक रूप से [ जैन- दार्शनिकों के ] तत्त्वों पर श्रद्धा न रखना एक एक प्रकार का [ मिथ्यादर्शन ] है, दूसरा प्रकार वह है जिसमें दूसरों ( अन्य सम्प्रदायों ) के उपदेश से [ जैनदर्शन में अश्रद्धा ] उत्पन्न होती है ।
[ ख ] पृथ्वी आदि ( = पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, स्थावर, जंगम - पुद्गल अस्तिकाय ) छह पदार्थों का उपादान ( ग्रहण ) तथा छह इन्द्रियों का संयमन न करना अविरति है । [वित - इन्हें त्याग बेना, अक्रिति - नहीं त्वानना-इससे बन्धन होता है । ]
[ग] पाँच समितियों और तीन गुप्तियों [ के प्रयोग ] का प्रयास न करना प्रमाद है । [ पाँच समितियों और तीन गुप्तियों का वर्णन अभी तुरन्त किया जायगा । कर्मपुद्गलों के प्रवेश से अपनी रक्षा करना 'गुप्ति' है । कामगुप्ति, वाग्गुप्ति और मनोगुप्ति---ये तीन भेद हैं । प्राणियों को पीड़ा न देते हुए व्यवहार रखना 'समिति' है जिसके ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान, उत्सर्ग आदि भेद हैं । देखें - अनु० २३ ] |
[घ] क्रोधादि कषाय है [ आदि = मान, माया, लोभ ] । यहाँ एक विभाजन ( Distinction ) करना पड़ता है कि कषाय तक के चारों हेतु ( = मिथ्यादर्शन आदि )
१. उपलक्षण = एक पदार्थ का अपने सदृश अन्य पदार्थों का बोध कराना । उदाहरणार्थ 'काभ्यो दधि रक्ष्यताम्' के 'काक' शब्द दधि के विनाशक अन्य जीवों का भी उपलक्षण है । दही को कौए से बचाना बिल्ली, बानर आदि सभी जीवों से बचाना ।