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नायकः
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नायकः
नायक:- काव्य/नाट्य का प्रधान पात्र । नायक कथा का प्रधान पात्र
होता है जो न केवल पूरे कथानक में व्याप्त रहता है बल्कि उसे फल की ओर भी ले जाता है तथा अन्त में उत्कर्ष (विजयरूप फल) को प्राप्त करता है, अतः शास्त्रों में विस्तार से उसके गुणों का प्रतिपादन किया गया है। सा.द. में उन गुणों का सङ्ग्रह इस प्रकार किया गया है - त्यागी कृती कुलीनः सुश्रीको रूपयौवनोत्साही । दक्षोऽनुरक्तलोकस्तेजोवैदग्ध्यशीलवान्नेता।। अर्थात् वह दाता, कर्मकुशल, उच्चकुलोत्पन्न, लक्ष्मीवान्, रूपवान्, युवक, उत्साही, कार्य को शीघ्रता से करने वाला, लोकप्रिय, तेज, विद्वत्ता और शील से युक्त होता है। नायक के विशिष्ट सात्त्विक गुणों में शोभा, विलास, माधुर्य, गाम्भीर्य, धैर्य, तेज, लालित्य और औदार्य की गणना की गयी है।
मुख्य रूप से नायक चार प्रकार के होते हैं - धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित और धीरप्रशान्त । ये चारों प्रकार के नायक दक्षिण, धृष्ट, अनुकूल और शठ के भेद से पुनः चार-चार प्रकार के होकर सोलह प्रकार के हो जाते हैं। ये सभी सोलह प्रकार के नायक उत्तम, मध्यम और अधम के भेद से तीन-तीन प्रकार के होते है। इस प्रकार नायक कुल अड़तालीस प्रकार के हैं।
नायक के बहुव्यापी व्यापार में उसकी सहायता करने वाले पात्र नायक के सहायक कहे जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख पीठमर्द पताका का नायक होता है जो नायक के सुदूरवर्ती चरित्र में उसकी सहायता करता है। यह उसका उत्तम कोटि का सहायक माना गया है। शृङ्गारकार्य में विट, चेट तथा विदूषक आदि उसकी सहायता करते हैं। ये सभी स्वामिभक्त, परिहास में चतुर तथा कुपित नायिका का प्रसादन करने में निपुण होते हैं। इनमें से विट और विदूषक मध्यम कोटि के तथा चेट आदि (माली, धोबी, तमोली, गन्धी) अधम कोटि के सहायक हैं। अर्थचिन्ता में राजा की सहायता मन्त्री करता है । अन्तःपुर में बौने, नपुंसक, किरात, म्लेच्छ, अहीर, शकार, कुबड़े आदि उसकी सहायता करते हैं। दण्डप्रयोग में मित्र, राजकुमार, आटविक तथा सैनिक लोग उसके सहायक होते हैं। धर्मकार्यों में ऋत्विक्, पुरोहित, ब्रह्मज्ञानी तथा तपस्वी उसका सहयोग करते हैं। राजा के सन्देश आदि ले जाने में उसकी सहायता के लिए दूत नियुक्त होते हैं। (3/35)