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________________ नान्दी 89 . नान्दी नान्दी-नाट्य के प्रारम्भ में किया जाने वाला माङ्गलिक अनुष्ठान। आचार्य भरत ने ना.शा. में पूर्वरङ्ग के प्रत्याहार आदि उन्नीस अङ्गों का उल्लेख किया है, उनमें नान्दी प्रमुख है। इसकी अवश्यकर्त्तव्यता पर बल देते हुए आचार्य विश्वनाथ ने कहा है कि यद्यपि पूर्वरङ्ग के प्रत्याहार आदि अनेक अङ्ग हैं तथापि रङ्गविघ्नों की उपशान्ति के लिए नान्दी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए-प्रत्याहारादिकान्यङ्गान्यस्य भूयांसि यद्यपि। तथाप्यवश्यं कर्त्तव्या नान्दी विघ्नोपशान्तये।। यह सभी को आनन्दित करती है, अत: इसकी नान्दीसंज्ञा अन्वर्थिका है-नन्दयति देवादीन् स्तुत्या, आनन्दयति सभ्यान् स्तुतदेवताप्रसादादिति नान्दी। इसमें आठ अथवा बारह पदों में देवता, ब्राह्मण, राजा आदि की आशीर्वचन से युक्त स्तुति की जाती है। यह किसी माङ्गलिक वस्तु शङ्ख, चक्र, कमल, चक्रवाक, कुमुदादि के वर्णन से युक्त होती है-आशीर्वचनसंयुक्ता स्तुतिर्यस्मात्प्रयुज्यते। देवद्विजनृपादीनां तस्मान्नान्दीति संज्ञिता। मङ्गल्यशङ्खचन्द्राब्जकोककैरवशंसिनी। पदैर्युक्ता द्वादशभिरष्टभिर्वा पदैरुत।। अष्टपदा नान्दी अनर्घराघव में तथा द्वादशपदा कविराज के तातपाद द्वारा रचित पुष्पमाला में है। .. ___ यहाँ आचार्य विश्वनाथ ने एक शास्त्रीय प्रश्न उठाया है कि उपर्युक्त पद्यों को किन्हीं अन्य आचार्यों के मतानुसार ही नान्दी कह दिया गया है, वस्तुतः यह पूर्वरङ्ग का रङ्गद्वार नामक अङ्ग है। इससे अभिनय का प्रारम्भ . होने के कारण ही इसकी संज्ञा रङ्गद्वार है-यस्मादभिनयो ह्यत्र प्राथम्यादवतार्यते। रङ्गद्वारमतो ज्ञेयं वागङ्गाभिनयात्मकम्।। नान्दी का प्रयोग इससे पूर्व किया जाता है जो स्वयं नटों के द्वारा ही कर्त्तव्य होता है। अतएव आचार्य ने नाट्यरचना के प्रकरण में इसका निर्देश नहीं किया। दूसरी ओर यदि पूर्वोदाहृत पद्यों को नान्दी माना जाये तो यह लक्षण विक्रमोर्वशीयम् के 'वेदान्तेषु यमाहुः' आदि पद्यों में भी अतिव्याप्त हो जायेगा जबकि अष्टपदा अथवा द्वादशपदा का लक्षण इसमें घटित नहीं होता। इसीलिए प्राचीन संस्करणों में "नान्द्यन्ते सूत्रधारः" इस कथन के अनन्तर ही उपर्युक्त श्लोक का पाठ किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि नान्दी के अनन्तर सूत्रधार ने इस श्लोक का पाठ किया है। (6/10-11)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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