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नर्म
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नर्मस्फोट:
कि करिष्यति । राजा - इदम् । इति व्यवसितः । शकुन्तला वस्त्रं ढौकते " । सभय हास्य र.ना. में आलेख्य दर्शन के अवसर पर सुसङ्गता के इस कथन में उपस्थित हुआ है- " ज्ञातो मयैष वृत्तान्तः समं चित्रफलकेन । तद्देव्यै गत्वा निवेदयिष्यामि'। ये सब वाक्यसम्बन्धी नर्म के उदाहरण हैं। (6/146)
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नर्म- प्रतिमुख सन्धि का एक अङ्ग । परिहास से युक्त वचन नर्म कहे जाते हैं-परिहासवचो नर्म । इसका उदाहरण र.ना. में सुसङ्गता और सागरिका का यह वार्त्तालाप है-“ सखि ! यस्य कृते त्वमायाता सोऽयं ते पुरतस्तिष्ठतीति । " 'कस्य कृतेऽहमागता''।" अयि अन्यशङ्किते ननु चित्रफलकस्य'"। (6/86) नर्मगर्भ:- कैशिकी वृत्ति का एक अङ्ग । जहाँ नायक प्रच्छन्न रूप से व्यवहार करे - नर्मगर्भो व्यवहृतिर्नेतुः प्रच्छन्नवर्त्तिनः । यथा मा.मा. में सखीरूपधारी माधव के द्वारा मालती को मरण से रोकना। (6/149)
नर्मद्युतिः- प्रतिमुख सन्धि का एक अङ्ग । परिहास की सहिष्णुता को नर्मद्युति कहते हैं- द्युतिस्तु परिहासजा नर्मद्युतिः । यथा र. ना. में सुसङ्गता और सागरिका का यह वार्त्तालाप - " सुसङ्गता - सखि ! अदक्षिणा इदानीं त्वमसि या एवं भर्त्रा हस्तावलम्बितापि कोपं न मुञ्चसि । सागरिका - सुसङ्गते ! इदानीमपि न विरमसि'। यहाँ सागरिका की परिहाससहिष्णुता व्यक्त हुई है। कुछ आचार्य दोष को छिपाने वाले हास्य को नर्मद्युति कहते हैं - दोषस्याच्छादनं हास्य नर्मद्युतिः । (6/87)
नर्मस्फूर्ज:- कैशिकी वृत्ति का एक अङ्ग । प्रारम्भ में सुखद तथा अन्त में भयदायक नवीन सङ्गम को नर्मस्फूर्ज कहते हैं - नर्मस्फूर्जः सुखारम्भो भयान्तो नवसङ्गमः । यथा मा.अ. में में मालविका का राजा के प्रति यह कथन-भर्तः! देव्या भयेनात्मनोऽपि प्रियं कर्त्तुं न पारयामि । ( 6/147)
नर्मस्फोट:- कैशिकी वृत्ति का एक अङ्ग । थोडे-थोड़े प्रकाशित भावों से जहाँ कुछ-कुछ रस सूचित होता है, उसे नर्मस्फोट कहते हैं- नर्मस्फोटो भावलेशैः सूचिताल्परसो मतः । यथा मा.मा. में इस पद्य में माधव का मालती के प्रति कुछ कुछ अनुराग प्रकाशित हुआ है- गमनमलसं शून्या दृष्टिः शरीरमसौष्ठवं, श्वसितमधिकं किं न्वेतत्स्यात् किमन्यदितोऽथवा । भ्रमति भुवने कन्दर्पाज्ञा विकारि च यौवनं, ललितमधुरास्ते ते भावाः क्षिपन्ति च धीरताम्।। (6/148)