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__ नर्म नीवाराञ्जलिनापि केवलमहो सेयं कृतार्था तनुः।। यह तत्त्वज्ञान को प्राप्त किसी निस्पृह पुरुष की धृतिपूर्ण उक्ति है। (3/177)
धृष्टः-नायक का एक भेद। जो अपराध करके भी निश्शङ्क रहे, डाँट सुनकर भी निर्लज्ज बना रहे, दोष के प्रकट हो जाने पर भी असत्य बोलता रहे, वह धृष्ट नायक कहा जाता है-कृतागा अपि निश्शङ्कस्तर्जितोऽपि न लज्जितः। दृष्टदोषोऽपि मिथ्यावाक् कथितो धृष्टनायकः!। यथा-शोणं वीक्ष्य मुखं विचुम्बितुमहं यातः समीपं ततः, पादेन प्रहृतं तया सपदि तं धृत्वा सहासे मयि। किञ्चित्तत्र विधातुमक्षमतया वाष्पं त्यजन्त्याः सखे, ध्यातश्चेतसि कौतुकं वितनुते कोपोऽपि वामभ्रवः।। (3/43)
धैर्यम्-नायक का सात्त्विक गुण। महान् विघ्न उपस्थित होने पर भी अपने कर्त्तव्य से विचलित न होना धैर्य है-व्यवसायादचलनं धैर्यं विघ्ने महत्यपि। यथा-श्रुताप्सरोगीतिरपि क्षणेऽस्मिन्हरः प्रसङ्ख्यानपरो बभूव। आत्मेश्वराणां न हि जातु विघ्नाः समाधिभेदप्रभवो भवन्ति।। यहाँ शिव के धैर्य का वर्णन है। (3/66)
धैर्यम्-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार। आत्मप्रशंसा से युक्त अचञ्चल मनोवृत्ति धैर्य कही जाती है-उक्तात्मश्लाघना धैर्यं मनोवृत्तिरचञ्चला। यथा-ज्वलतु गगने रात्रौ रात्रावखण्डकलः शशी, दहतु मदनः कं वा मृत्योः परेण विधास्यति। मम तु दयितः श्लाघ्यस्तातो जनन्यमलान्वया, कुलममलिनं न त्वेवायं जनो न च जीवितम्।। (3/113)
नतिः-नायिका का मान भङ्ग करने का एक उपाय। चरणों में गिरकर नायिका का प्रसादन करना नति है-पादयोः पतनं नतिः। (3/208)
नर्म-कैशिकी वृत्ति का एक अङ्ग। चतुरतापूर्ण क्रीडा का नाम नर्म है जो प्रियजनों के चित्त को आवर्जित कर ले-वैदग्ध्यक्रीडितं नर्म। इष्टजनावर्जनकृत्। शुद्ध हास्य, शृङ्गारयुक्त हास्य तथा भययुक्त हास्य के भेद से वह तीन प्रकार का होता है-तच्चापि त्रिविधं मतम्। विहितशुद्धहास्येन सशृङ्गारभयेन च। शुद्ध हास्य का उदाहरण र.ना. में वासवदत्ता की उक्ति "एषाप्यपरा तव समीपे यथा लिखिता, एतत्किमार्यवसन्तस्य विज्ञानम्" है। शृङ्गार युक्त हास्य का उदाहरण अ.शः में है-"शकुन्तला-असन्तुष्टः पुनः