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(प्रगल्भा) धीराधीरा 84
धृतिः (प्रगल्भा) धीराधीरा-स्वकीया नायिका का एक भेद। प्रगल्भा धीराधीरा नायिका व्यङ्ग्य भरे वचनों से नायक को खिन्न करती हैधीराधीरा तु सोल्लुण्ठभाषितैः खेदयत्यमुम्। यथा-अनलङ्कृतोऽपि सुन्दर हरसि मनो मे यतः प्रसभम्। किं पुनरलङ्कृतस्त्वं सम्प्रति नखरक्षतैस्तस्याः।। (3/77)
(मध्या) धीराधीरा-स्वकीया नायिका का एक भेद। मध्या धीराधीरा नायिका क्रुद्ध होकर रोदन क्रिया के द्वारा अपने रोष को व्यक्त करती हैधीराधीरा तु रुदितैः। यथा-बाले नाथ विमुञ्च मानिनि रुषं रोषान्मया किं कृतं, खेदोऽस्मासु न मेऽपराध्यति भवान् सर्वेऽपराधा मयि। तत्किं रोदिषि गद्गदेन वचसा कस्याग्रतो रुद्यते, नन्वेतन्मम का तवास्मि दयिता नास्मीत्यतो रुद्यते।। (3/75)
धीरोदात्तः-नायक का एक भेद। आत्मप्रशंसा न करने वाला, क्षमायुक्त, अत्यन्त गम्भीर, शोकक्रोध आदि से जिसका अन्त:करण अभिभूत नहीं होता, स्थिर प्रकृति वाला, विनय के कारण जिसका गर्व प्रच्छन्न रहता है, अङ्गीकृत का निर्वाह करने वाला नायक धीरोदात्त कहा जाता है-अविकत्त्थनः क्षमावानतिगम्भीरो महासत्त्वः। स्थेयान्निगूढमानो धीरोदात्तो दृढव्रतः कथितः।। यथा-राम, युधिष्ठिरादि। (3/37)
धीरोद्धत:-नायक का एक भेद। मायावी (जो मन्त्रादि के बल से अविद्यमान वस्तुओं का भी प्रकाशन कर सकता है), रौद्र, अनवस्थितचित्त, अहङ्कार और गर्व से युक्त, आत्मप्रशंसी नायक धीरोद्धत कहा जाता हैमायापरश्चपलोऽहङ्कारदर्पभूयिष्ठः। आत्मश्लाघानिरतो धीरैर्धीरोद्धतः कथितः। यथा-भीमसेनादि। (3/38)
धृतिः-एक व्यभिचारीभाव। तत्त्वज्ञान तथा इष्टप्राप्ति आदि के कारण इच्छाओं का पूर्ण हो जाना धृति कहा जाता है। इसमे सम्पूर्ण तृप्ति, आनन्दपूर्ण वचन, मन्दहास तथा बुद्धिविकास आदि होते हैं-ज्ञानाभीष्टागमाद्यैस्तु सम्पूर्णस्पृहता धृतिः। सौहित्यवचनोल्लाससहासप्रतिभादिकृत्।। यथा-कृत्वा दाननिपीडनां निजजने बद्ध्वा वचोविग्रहं, नैवालोच्य गरीयसीरपि चिरादामुष्मिकीर्यातनाः। द्रव्यौघाः परिसञ्चिताः खलु मया यस्याः कृते साम्प्रतं,