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द्विगूढ़कम्
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(मध्या) धीरा
कोऽयं पन्था यदसि विमुखो मन्दभाग्ये मयि त्वम्।। इसका उदाहरण है। (6/113)
द्विगूढ़कम् - एक लास्याङ्ग। जिसमें पद चतुरस्र, मुख और प्रतिमुख सन्धियाँ तथा रस और भाव समृद्ध हों, उस गीत को द्विगूढ़क कहते हैं - चतुरस्रपदं गीतं, मुखप्रतिमुखान्वितम् । द्विगूढं रसभावाढ्यम् । (6/249)
धर्मवीरः- वीररस का एक भेद । धर्ममूलक उत्साह नामक स्थायीभाव जहाँ विभावादि के द्वारा परिपुष्ट होकर रस के रूप में परिणत होता है, वहाँ धर्मवीर नामक रस होता है । यथा - राज्यं च वसु देहश्च भार्या भ्रातृसुताश्च ये। यच्च लोके ममायत्तं तद्धर्माय सदोद्यतम् ।। (3/228)
धीरप्रशान्त:-नायक का एक भेद । नायक के सामान्य गुणों विनयादि से युक्त ब्राह्मण आदि धीरप्रशान्त कहे जाते हैं- सामान्यगुणैर्भूयान् द्विजादिको धीरशान्तः स्यात् । यथा मा.मा. में माधवादि। (3/40)
धीरललित :- नायक का एक भेद । चिन्तारहित (सचिवादि पर योगक्षेम का भार डालकर), मधुर, निरन्तर नृत्यादि कलाओं में रत नायक धीरललित होता है - निश्चिन्तो मृदुरनिशं कलापरो धीरललितः स्यात्। यथा, र.ना. आदि में वत्सराज आदि। (3/39)
(प्रगल्भा ) धीरा - स्वकीया नायिका का एक भेद । प्रगल्भा नायिका यदि धीरा हो तो वह अपने क्रोध को छिपाकर रखती है। बाहर से आदर प्रकट करती हुई भी वह रति में उदासीन रहती है- प्रगल्भा यदि धीरा स्याच्छन्नकोपाकृतिस्तदा । उदास्ते सुरते तत्र दर्शयन्त्यादरान्बहिः । । यथा–एकत्रासनसंस्थितिः परिहृता प्रत्युद्गमाद्दूरतस्ताम्बूलानयनच्छलेन रभसाश्लेषोऽपि संविघ्नितः। आलापोऽपि न मिश्रितः परिजनं व्यापारयन्त्यान्तिके, कामं प्रत्युपचारतश्चतुरया कोपः कृतार्थीकृत: ।। (3/76)
(मध्या) धीरा - स्वकीया नायिका का एक भेद । नायक पर क्रोधित होकर उसे परिहासपूर्ण वक्रोक्ति के द्वारा विद्ध करने वाली नायिका मध्याधीरा कही जाती है प्रियं सोत्प्रासवक्रोक्त्या मध्याधीरा दहेद्रुषा । यथा-तदवितथमवादीर्यन्मम त्वं प्रियेति, प्रियजनपरिभुक्तं यद् दुकूलं दधानः । मदधिवसतिमागाः कामिनीनां मण्डन श्रीर्व्रजति हि सफलत्वं वल्लभालोकनेन ।। (3/75)