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________________ दैन्यम् दृष्टान्तः 81 भी दूती का कार्य करती हुई देखी गयी है। दूती को कलाओं में निपुण, उत्साहशील, भक्तियुक्त, दूसरे के हृद्भावों को समझने वाली, अच्छी स्मृति वाली, मधुर, वक्रोक्ति के विशिष्ट ज्ञान से युक्त तथा बोलने में कुशल होना चाहिए। दूत्यः सखी नटी दासी धात्रेयी प्रतिवेशिनी। बाला प्रव्रजिता कारू: शिल्पिन्याद्याः स्वयं तथा।। कलाकौशलमुत्साहो भक्तिश्चित्तज्ञता स्मृतिः। माधुर्यं नर्मविज्ञानं वाग्मिता चेति तद्गुणाः।। ये भी औचित्य के अनुसार उत्तम, मध्यम तथा अधम होती हैं-एता अपि यथौचित्यादुत्तमाधममध्यमाः।। (3/136-37) दृष्टान्तः-एक नाट्यलक्षण। पक्ष में साध्य के साधन के लिए तर्क के निदर्शन को दृष्टान्त कहते हैं-दृष्टान्तो यस्तु पक्षार्थसाधनाय निदर्शनम्। यथा वे.सं.में सहदेव की भानुमती के विषय में यह उक्ति--"आर्य! उचितमेवैतत्तस्याः । यतो दुर्योधनकलत्रं हि सा"। (6/177) दृष्टान्तः-एक अर्थालङ्कार। दो वाक्यों में धर्मसहित उपमानोपमेय के प्रतिबिम्बन को दृष्टान्त कहते हैं-दृष्टान्तस्तु सधर्मस्य वस्तुनः प्रतिबिम्बनम्। यहाँ प्रतिबिम्बन से अभिप्राय है-सादृश्य का प्रतीयमान होना। इसका भी साधर्म्य और वैधर्म्यरूप में दोनों प्रकार से कथन किया जा सकता है। इनके क्रमशः उदाहरण ये हैं-अविदितगुणापि सत्कविभणितिः कर्णेषु वमति मधुधाराम्। अनधिगतपरिमलापि हि हरति दृशं मालतीमाला।। (साधर्म्य) तथा, त्वयि दृष्टे कुरङ्गाक्ष्याः संसते मदनव्यथा। दृष्टानुदयभाजीन्दौ ग्लानिः कुमुदसंहतेः।। (वैधर्म्य) प्रतिवस्तूपमा में केवल उपमानोपमेय में ही बिम्बप्रतिबिम्बभाव होता है जबकि दृष्टान्त में साधारणधर्मसहित उपमानोपमेय प्रतिबिम्बित होते हैं। (10/69) दैन्यम्-एक व्यभिचारीभाव। दुर्गति आदि के द्वारा उत्पन्न ओजहीनता की स्थिति दैन्य कही जाती है। इससे मलिनता आदि उत्पन्न होते हैं-दौर्गत्याद्यैरनौजस्यं दैन्यं मलिनतादिकृत्। यथा-वृद्धोऽन्धः पतिरेष मञ्चकगतः स्थूणावशेषं गृहं कालोऽभ्यर्णजलागमः कुशलिनी वत्सस्य वार्तापि नो। यत्नात्सञ्चिततैलबिन्दुघटिका भग्नेति पर्याकुला, दृष्ट्वा गर्भभरालसां
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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