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त्रिकपट:
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तेजः
का एक ही धर्म के साथ सम्बन्ध तुल्ययोगिता है - पदार्थानां प्रस्तुतानामन्येषां वा यदा भवेत्। एकधर्माभिसम्बन्धः स्यात्तदा तुल्ययोगिता ।। यह धर्म गुण अथवा क्रियारूप होता है। यथा - अनुलेपनानि कुसुमान्यबलाः कृतमन्यवः पतिषु दीपदशाः । समयेन तेन सुचिरं शयितप्रतिबोधितस्मरमबोधिषत । । इस उदाहरण में अनेक प्रस्तुत पदार्थ अनुलेपन, कुसुम, पतियों पर क्रुद्ध स्त्रियाँ तथा दीपों की पंक्तियाँ कामदेव को जगाने रूपी एक ही क्रिया के साथ सम्बद्ध हैं । तदङ्गमार्दवं द्रष्टुः कस्य चित्ते न भासते। मालती शशभृल्लेखाकदलीनां कठोरता।। यहाँ मालती आदि अप्रस्तुत पदार्थों का एक ही कठोरता रूप गुण से सम्बन्ध है। (10/66)
तेज:- नायक का सात्त्विक गुण । अन्य के द्वारा किये गये अपमानादि का प्राण जाने पर भी सहन न करना तेज है- अधिक्षेपापमानादेः प्रयुक्तस्य परेण यत्। प्राणात्ययेऽप्यसहनं तत्तेजः समुदाहृतम् ।। (3/67)
तोटकम् - गर्भसन्धि का एक अङ्ग । अधीरतापूर्ण वचन को तोटक कहते हैं- तोटकं पुनः संरब्धवाक्। यथा च. कौ. में " आः, पुनः कथमद्यापि न सम्भूता: स्वर्गदक्षिणाः", आदि उक्ति । ( 6/105)
त्रासः - एक व्यभिचारीभाव । वज्रपात, विद्युत्, तारा टूटने आदि से उत्पन्न मन की व्यग्रता त्रास कही जाती है। इसमें कम्प आदि होते हैं-निर्घातविद्युदुल्काद्यैस्त्रासः कम्पादिकारकः । यथा-परिस्फुरन्मीनविघट्टितोरवः सुराङ्गनास्त्रासविलोलदृष्टयः । उपाययुः कम्पितपाणिपल्लवाः सखीजनस्यापि विलोकनीयताम्।। यहाँ जलविहार करती हुई सुराङ्गनाओं के उरुप्रदेश से मछलियों के टकरा जाने पर उनके त्रास की स्थिति वर्णित की गयी है। (3/172)
त्रिकपट:-स्वाभाविक, कृत्रिम और दैवज - यह तीन प्रकार का कपट होता है - कपट : पुन: स्वाभाविक: कृत्रिमश्च दैवजः । इनमें से प्रथम प्रकार का कपट कथावस्तु के सहज क्रम में परिस्थितिवश आ जाता है। कृत्रिम कपट दूसरे पुरुषों के द्वारा किसी को सुख अथवा दुःख आदि देने की भावना से प्रयुक्त किया जाता है तथा दैवी कपट किसी अदृश्य शक्ति से प्राप्त होता है। (6/258)