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चित्रम्
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चिन्ता
चित्रम् - एक शब्दालङ्कार । वर्णों का कमल, खड्ग, मुरज, चक्र, गोमूत्रिका आदि के स्वरूप में परिणत हो जाना चित्र कहा जाता है। इस प्रकार यद्यपि यह वैचित्र्य केवल लेख में उत्पन्न होता है तथापि इन आकारनिष्ठ वर्णों का श्रोत्रग्राह्य शब्दों के साथ लक्षणा से अभेद मान लेने पर उनमें भी काव्यत्व उत्पन्न हो जाता है। कमलबन्ध का उदाहरण आचार्य ने स्वरचित पद्य के रूप में प्रस्तुत किया है - मारमासुषमाचारुरुचामारवधूत्तमा। मात्तधूर्त्ततमावासा सा वामा मेऽस्तु मारमा ||
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चिन्ता - एक व्यभिचारी भाव । चित्त की एकाग्रता अथवा एकतानता रूप ध्यान चिन्ता है। यह भाव हितकर वस्तु के प्राप्त न होने पर उत्पन्न होता है तथा इसमें बुद्धि और इन्द्रियों की विकलता, श्वास तथा ताप उत्पन्न होते हैं-ध्यानं चिन्ता हितानाप्तेः शून्यता श्वासतापकृत्। यथा-कमलेन विकसितेन संयोजयन्ती विरोधिनं शशिबिम्बम् । करतलपर्यस्तमुखी किं चिन्तयसि सुमुखि अन्तराहितहृदया।। यहाँ करतल पर मुख को रखकर बैठी हुई नायिका की चिन्तादशा का वर्णन हुआ है । (3/180)
चिन्ता - पूर्वराग में काम की द्वितीय दशा । प्रिय के साथ मिलन के उपाय के विषय में विचार करना चिन्ता है - चिन्ता प्राप्त्युपायादिचिन्तनम् । यथा-कथमीक्षे कुरङ्गाक्षीं साक्षाल्लक्ष्मीं मनोभुवः । इति चिन्ताकुलः कान्तो निद्रां नैति निशीथिनीम् ।। यहाँ नायिका की प्राप्ति के विषय में इन्द्रजाल को देखने से उत्पन्न अनुराग वाले नायक की चिन्ता अभिव्यक्त हुई है। (3/196)