SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चकितम् चर्वणा शरीरं. शरदिज इव धर्मः केतकीगर्भपत्रम्।। यहाँ राम द्वारा परित्यक्त वन में निवास करती हुई सीता की मनस्तापजन्य ग्लानि का वर्णन किया गया है। (3/179) __ चकितम्-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार। प्रिय के आगे अकारण ही भय और सम्भ्रम प्रकट करना चकित कहा जाता है-कुतोऽपि दयितस्याग्रे चकितं भयसम्भ्रमः। यथा-त्रस्यन्ती चलशफरीविघट्टतोरूर्वामोरूरतिशयमाप विभ्रमस्य। क्षुभ्यन्ति प्रसभमहो विनापि हेतोबलाभिः किमु सति कारणे तरुण्यः।। यहाँ जलविहार के समय छोटी सी मछली के जाँघ से टकरा जाने पर नायिका भयभीत हो रही है। (3/130) चपलता-एक व्यभिचारीभाव। मात्सर्य, द्वेष, रागादि के कारण चित्त का अनवस्थित हो जाना चपलता है। इसमें व्यक्ति भर्त्सना, कठोर शब्दों का प्रयोग, स्वच्छन्द आचरण आदि में प्रवृत्त हो जाता है-मात्सर्यद्वेषरागादेश्चापल्यं त्वनवस्थितिः। तत्र भर्त्सनपारुष्यस्वच्छन्दाचरणादयः।। यथा-अन्यासु तावदुपमर्दसहासु भृङ्गलोलं विनोदय मनः सुमनोलतासु। मुग्धामजातरजसं कलिकामकाले व्यर्थं कदर्थयसि किं नवमालिकायाः।। यहाँ भृङ्ग के व्याज से किसी चपल नायक को उपालम्भ दिया गया है जो मुग्धा तथा अजातरजसा नायिका का उपमर्द करना चाहता है। (3/178) चमत्कृतिः-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) चम्पू:-श्रव्यकाव्य का भेद। गद्य और पद्य दोनों से मिश्रित काव्य को चम्पू कहा जाता है-गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते। यथा, देशराजचरितम्। (6/313) चर्वणा-रसास्वादन की प्रक्रिया को चर्वणा कहते हैं। विभावानुभावव्यभिचारीभाव के संयोग से चर्वणा नामक व्यापार की निष्पत्ति होती है। उसी का उपचार से रस में भी प्रयोग कर देते हैं, इसीलिए 'रस की उत्पत्ति' जैसे प्रयोग भी बन जाते हैं। रस से अभिन्न होने के कारण यद्यपि उसमें भी कार्यत्व नहीं है तथापि, क्योंकि वह कभी-कभी ही होती है, सदा नहीं रहती अतः अनित्यत्वरूप साधारणधर्म होने के कारण उसमें कार्यत्व उपचरित होता है
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy