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गौणीलक्षणा
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गौणीलक्षणा
सुखानि - तिल के अतिरिक्त सरसों आदि के स्नेह में भी तैल शब्द रूढ़ है, अतः रूढ़िलक्षणा है। तिलभव स्नेह के साथ-साथ सरसों आदि के स्नेह का भी उपादान होने से उपादानलक्षणा है। 'एतत् ' शब्द से विषय का निर्देश होने के कारण सारोपा है तथा तिलभव तैल का अन्य तैलों के साथ सादृश्य प्रतिपादित होने के कारण गौणी लक्षणा है। (2) रूढ़िलक्षण सारोपागौणी - राजा गौडेन्द्रः कण्टकं शोधयति । यहाँ 'कण्टक' शब्द क्षुद्र शत्रु के अर्थ में रूढ़ है तथा इस वाक्य में क्षुद्र शत्रुरूप अर्थ का उपलक्षणमात्र है, अतः लक्षणलक्षणा भी है। गौडेन्द्र शब्द से विषय का पृथक् निर्देश होने के कारण सारोपा तथा कण्टक शब्द का काँटे की तरह दुःख देने वाले क्षुद्र शत्रु के साथ सादृश्य सम्बन्ध है, अतः गौणी भी है। (3) रूढ़िउपादान साध्यवसानागौणी-तैलानि हेमन्ते सुखानि । इसका वैशिष्ट्य प्रथम उदाहरण के ही समान है, केवल एतत् पद से विषय का पृथक् निर्देश न होने के कारण यह साध्यवसाना है। (4) रूढ़िलक्षणसाध्यवसानागौणी - राजा कण्टकं शोधयति। इसका द्वितीय उदाहरण से केवल इतना ही वैशिष्ट्य है कि यहाँ 'गौडेन्द्र' शब्द से विषय का पृथक् निर्देश नहीं है। (5) प्रयोजन उपादानसारोपागौणी - एते राजकुमारा गच्छन्ति । एक राजकुमार के साथ उसके सदृश अन्य कुमारों के गमन करने पर यह वाक्य प्रयुक्त हुआ है। अन्य कुमारों का भी राजकुमार के तुल्य ही वैशिष्ट्यप्रतिपादन इस लक्षणा का प्रयोजन है। राजकुमारों के साथ अन्य कुमारों का भी उपादान होता है तथा एतत् पद से विषय का पृथक् निर्देश होने से आरोप भी है। राजकुमार का अन्य कुमारों के साथ सादृश्य भी प्रतिपादित होता है, अत: गौणी लक्षणा भी है। (6) प्रयोजनलक्षणसारोपागौणी - गौर्वाहीकः । वाहीक में गौ के समान जाड्यमान्द्य आदि की प्रतीति कराना इसका प्रयोजन है। गौ पद जाड्यमान्द्य आदि गुणों का उपलक्षण मात्र है तथा वाहीक पद से विषय का पृथक् निर्देश होने के कारण आरोप भी है। गौ का वाहीक के साथ सादृश्यसम्बन्ध प्रतिपादित होने के कारण गौणी भी है। (7) प्रयोजनउपादानसाध्यवसानागौणी - राजकुमारा गच्छन्ति। पञ्चम उदाहरण से इसका वैशिष्ट्य केवल इतना है कि यहाँ एतत् पद से विषय का पृथक् निर्देश नहीं है। (8) प्रयोजनलक्षणसाध्यवसानागौणीगौर्जल्पति । वाहीक रूप विषय का पृथक् निर्देश न होने से यह साध्यवसाना