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खण्डिता
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गण्डम्
खण्डिता - नायिका का एक भेद । अन्य स्त्री के सम्भोग से चिह्नित होकर नायक जिसके पास जाये, वह ईर्ष्या से कलुषित नायिका खण्डिता कही जाती है - पार्श्वमेति प्रियो यस्य अन्यसम्भोगचिह्नितः । सा खण्डितेति कथिता धीरैरीर्ष्याकषायिता । । यथा - तदवितथमवादीर्यन्मम त्वं प्रियेति, प्रियजनपरिभुक्तं यदुकूलं वसानः । मदधिवसतिमागा: कामिनां मण्डन श्रीर्व्रजति हि सफलत्वं वल्लभालोकनेन । । यहाँ अन्य स्त्री के दुकूल को धारण करके नायक खण्डिता नायिका के पास गया है। ( 3/89)
खेदः - विमर्शसन्धि का एक अङ्ग । मन तथा शरीर से उत्पन्न श्रम खेद नाम से कहा जाता है - मनश्चेष्टासमुत्पन्नः श्रमः खेद इति स्मृतः । यथा - मा. मा. में प्राप्य पद्य - दलति हृदयं गाढ़ोद्वेगो द्विधा न तु भिद्यते, वहति विकलः कायो मोहं न मुञ्चति चेतनाम् । ज्वलयति तनूमन्तर्दाहः करोति न भस्मसात्, प्रहरति विधिर्मर्मच्छेदी न कृन्तति जीवितम् ।। यह पद्य मनः समुत्पन्न खेद का उदाहरण है। चेष्टासमुत्पन्न खेद का उदाहरण अ.शा. में वृक्षों के सेचन से थकी हुई शकुन्तला के वर्णन में है । (6/117)
ख्यातिविरुद्धम् - एक काव्यदोष । जहाँ लोकप्रसिद्धि के विरुद्ध बात कही जाये वहाँ ख्यातिविरुद्ध दोष होता है। यथा - ततश्चचार समरे सितशूलधरो हरिः । विष्णु का शूलधारण लोक में प्रसिद्ध नहीं है, जैसा कि यहाँ वर्णित हुआ है। यथा वा, पादाघातादशोकस्ते सञ्जाताङ्कुरकण्टकः। यह कथन कविसमयख्यातिविरुद्ध है क्योंकि स्त्रियों के पादाघात से अशोक पर पुष्प आते हैं, अङ्कुर और कण्टक नहीं । कविसम्प्रदाय में जो बातें प्रसिद्ध होती हैं, उनमें ख्यातविरुद्धता गुण ही होती है। यह अर्थदोष है। (7/5)
गण्डम्-एक वीथ्यङ्ग । प्रस्तुत विषय से सम्बन्ध रखने वाला त्वरायुक्त अन्यार्थक वाक्य गण्ड कहलाता है - गण्डं प्रस्तुतसम्बन्धि भिन्नार्थं सत्वरं वचः । यथा वे.सं. में दुर्योधन रानी से ज्यों ही 'अध्यासितं तव चिराज्जघनस्थलस्य पर्याप्तमेव करभोरु ममोरुयुग्मम्" ऐसा कहता है, उसी समय कञ्चुकी ‘“देव! भग्नं भग्नम् " इस प्रकार कहता हुआ प्रवेश करता है। यद्यपि उसका आशय रथ की ध्वजा के भङ्ग होने से है तथापि वह
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