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क्लिष्टम्
खण्डकाव्यम् क्लिष्टम्-एक काव्यदोष। अर्थ की प्रतीति में व्यवधान का उपस्थित हो जाना क्लिष्ट दोष कहा जाता है-क्लिष्टमर्थप्रतीतेर्व्यवहितत्वम्। यथा-क्षीरोदजावसतिजन्मभुवः प्रसन्नाः। क्षीरोद-क्षीरसागर, उसमें उत्पन्न स्त्री लक्ष्मी, उसके निवासस्थान कमल की जन्मभूमि जल प्रसन्न हैं। जलरूप अर्थ को बताने के लिए 'क्षीरोदजावसतिजन्मभुवः' शब्द का प्रयोग क्लिष्ट है। यह पददोष समास में ही होता है।
यह दोष वाक्य में भी रहता है, यथा-धम्मिलस्य न कस्य प्रेक्ष्य निकामं कुरङ्गशावाक्ष्याः। रज्ज्यत्यपूर्वबन्धव्युत्पत्तेर्मानसं शोभाम्।। यहाँ अनेक पदों का सम्बन्ध जो दूर-दूर स्थित है, क्लेशपूर्वक स्थापित करना पड़ता है।
जहाँ अर्थप्रतीति अत्यन्त कष्टकर हो वहाँ अर्थगत कष्टत्व दोष होता है। यथा-वर्षत्येतदहर्पति न तु घनो धामस्थमच्छं पयः, सत्यं सा सवितुः सुता सुरसरित्पूरो यथा प्लावितः। व्यासस्योक्तिषु विश्वसत्यपि न कः श्रद्धा न कस्य श्रुतौ, न प्रत्येति तथापि मुग्धहरिणी भास्वन्मरीचिष्वपः।। (7/3, 4, 5)
क्षिप्ति:-गर्भसन्धि का एक अङ्ग। रहस्य के भेदन को क्षिप्ति कहते है-रहस्यार्थस्य तूइँदः क्षिप्तिः स्यात्। यथा वे.सं. में, एकस्यैव विपाकोऽयं दारुणो भुवि वर्तते। केशग्रहे द्वितीयेऽस्मिन् नूनं निःशेषिताः प्रजाः।। यह उक्ति।। (6/104)
क्षोमः-एक नाट्यालङ्कार। आक्षेपकारी वचन कहलाने वाले चित्तविक्षोभ को क्षोभ कहते हैं-अधिक्षेपवच:कारी क्षोभः प्रोक्तः स एव तु। यथा-त्वया तपस्विचाण्डाल प्रच्छन्नवधवर्तिना। न केवलं हतो वाली स्वात्मा च परलोकत:।। राम के प्रति कहा गया रावण का यह वाक्य क्षोभ का उदाहरण है। (6/217)
खण्डकाव्यम-काव्य का एक भेद। काव्य के एक भाग का अनुसरण करने वाली रचना खण्डकाव्य कही जाती है-खण्डकाव्यं भवेत्काव्यस्यैकदेशानुसारि च। महाकाव्य में जहाँ सम्पूर्ण जीवन का वर्णन होता है, यहाँ केवल उसकी एक घटना अथवा एक पक्ष का ही निरूपण सम्भव हो पाता है। इसका आकार लघु होता है तथा सभी नाट्यसन्धियों का भी निर्वाह नहीं होता। यथा मेघदूतम्। (6/308)