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________________ 56 काव्यलक्षणम् काव्यलक्षणम् अनवीनतारूप कारण के होने पर भी उत्कण्ठाभावरूप कार्य की उत्पत्ति न होने के कारण विशेषोक्ति का लक्षण भी उपलब्ध है परन्तु इनमें से किसी एक का निर्णायक हेतु उपलब्ध न होने के कारण तन्मूलक सन्देहसङ्करालङ्कार है। ____ इसी से कुन्तकाचार्य के "वक्रोक्तिः काव्यजीवितम्" का भी खण्डन हो जाता है क्योंकि वक्रोक्ति भी वस्तुतः एक अलङ्कार ही है। इसी ग्रन्थ से स.क. आदि ग्रन्थों के “अदोषं गुणवत्काव्यमलङ्कारैरलङ्कृतम्। रसान्वितम्...।।" आदि लक्षण भी खण्डित हो जाते हैं। वामन का लक्षण "रीतिरात्मा काव्यस्य" भी अतएव अस्वीकार्य है। मा.द.कार के समक्ष काव्य का एक अन्य प्रसिद्ध आत्मपरक लक्षण आचार्य आनन्दवर्धन का था जो ध्वनि को काव्य की आत्मा मानते थे-काव्यस्यात्मा ध्वनिः। परन्तु वस्त्वलङ्काररसरूप त्रिविध ध्वनि को यदि काव्य की आत्मा माना जाये तो प्रहेलिका आदि में भी काव्य का लक्षण अतिव्याप्त हो जायेगा क्योंकि प्रहेलिका में भी वस्तुध्वनि होती ही है और यदि रसध्वनि को ही काव्य की आत्मा माना जाये तो कोई विप्रतिपत्ति ही नहीं है, सिद्धान्ती की भी यही प्रतिज्ञा है। श्वश्रूरत्र निमज्जति आदि पद्यों में तो काव्यव्यवहार रसाभास से युक्त होने के कारण बनता है। वस्तुमात्र के व्यङ्ग्य होने पर तो 'देवदत्तो ग्रामं याति' इत्यादि वाक्य भी काव्य हो जायेगा क्योंकि यहाँ भी तद्धृत्यानुगमनरूप वस्तु ध्वनित हो रही है परन्तु रसवत्त्व का अभाव होने के कारण उसे काव्य नहीं माना जा सकता। भरतमुनि आदि चिरन्तन आचार्यों के अनेक कथन यहाँ प्रमाणरूप में उद्धृत किये जा सकते हैं। रसास्वादनपुरस्सर कान्तासम्मित पद्धति से कृत्य और अकृत्य में प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति के उपदेश द्वारा वेदशास्त्र विमुख, सुकुमारमति राजपुत्रादिकों को शिक्षित करना काव्य का प्रयोजन है। अ.पु. में "वाग्वैदग्ध्यप्रधानेऽपि रस एवात्र जीवितम्" कथन के द्वारा इसका समर्थन किया गया है। व्य.वि.कार महिमभट्ट के अनुसार भी रस के काव्यात्म होने के विषय में कोई विमति नहीं है-काव्यस्यात्मनि संज्ञिनि रसादिरूपे न कस्यचिद्विमतिः। स्वयं ध्वनिकार ने एक स्थल पर कहा है कि केवल इतिवृत्तमात्र के निर्वाह से कवित्व निष्पन्न नहीं हो जाता क्योंकि यह तो इतिहासादि से भी सिद्ध हो जाता है-न हि कवेरितिवृत्तमात्रनिर्वाहणात्मलाभः।
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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