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________________ काव्यम् 53 काव्यलक्षणम् भी काव्यगीतादि को भगवान् विष्णु के अंश कहा गया है - काव्यालापाश्च ये केचिद्गीतकान्यखिलानि च । शब्दमूर्तिधरस्यैते विष्णोरंशा महात्मनः ।। (1/2) काव्यम् - एक कथा के निरूपक पद्यों में संस्कृत अथवा प्राकृतादि भाषा में निबद्ध सर्गबद्ध रचना काव्य कही जाती है। इसमें सभी सन्धियाँ नहीं होतीं भाषाविभाषानियमात्काव्यं सर्गसमुत्थितम् । एकार्थप्रवणैः पद्यैः सन्धिसामग्यवर्जितम् ।। इसका उदाहरण भिक्षाटनम् तथा आर्याविलासः है। (6/307) काव्यम्-उपरूपक का एक भेद। यह मुख, प्रतिमुख तथा निर्वहण सन्धि से युक्त एकाङ्की रचना है। इसमें आरभटी वृत्ति का प्रयोग नहीं होता । हास्य रस से सङ्कुलित, खण्डमात्रा, द्विपदिका और भग्नताल गीतों से युक्त, वर्णमात्रा और छगणिका छन्दों से युक्त, शृङ्गारभाषित से सम्पन्न तथा उदात्त नायक और नायिका से युक्त होता है-काव्यमारभटीहीनमेकाङ्क हास्यसङ्कुलम्। खण्डमात्राद्विपदिकाभग्नतालैरलङ्कृतम्। वर्णमात्राछगणिकायुतं शृङ्गारभाषितम् । नेता स्त्री चाप्युदात्तात्र सन्धी आद्यौ तथान्तिमः । इसका उदाहरण यादवोदय: है। (6/288-89) काव्यलक्षणम्-वेदादि के होते हुए भी काव्य से ही चतुर्वर्ग की प्राप्ति का समर्थन आचार्य विश्वनाथ ने किया है, अतः उसके स्वरूप का निरूपण भी सर्वथा प्रासङ्गिक ही है परन्तु अपना काव्यलक्षण प्रस्तुत करने से पूर्व अपने से पूर्ववर्ती आचार्यों के मत की समीक्षा करना भी आवश्यक है क्योंकि यदि उन्हीं के द्वारा प्रदत्त लक्षण निर्दुष्ट हैं तो फिर एक नवीन लक्षण प्रस्तुत करने की आवश्यकता ही क्या है, अत: स्वाभिमत प्रस्तुत करने से पूर्व मम्मट आदि आचार्यों के काव्यलक्षण, जो उस समय तक पर्याप्त प्रसिद्धि को प्राप्त कर चुके थे, का खण्डन किया गया है। सर्वप्रथम मम्मट के द्वारा प्रदत्त लक्षण" तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलङ्कृती पुन: क्वापि " में प्रतिपद दूषणता का प्रतिपादन किया गया है। उपर्युक्त लक्षण में 'अदोषौ' पद के विषय में आचार्य विश्वनाथ का कन है कि यदि सर्वथा दोषरहित रचना में ही काव्यत्व स्वीकार किया
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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