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करुणः
कनिष्ठा मङ्गलपाठक! कथं स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्ट्राः" इस प्रकार कहता हुआ रङ्गमञ्च पर प्रवेश करता है। (6/19)
कनिष्ठा-स्वकीया नायिका का एक भेद। नायक के प्रणय की न्यूनता से युक्त मध्या और प्रगल्भा नायिका कनिष्ठा कही जाती है। यथा-दृष्ट्वैकासनसंस्थिते प्रियतमे पश्चादुपेत्यादरादेकस्या नयने पिधाय विहितक्रीडानुबन्धच्छलः। ईषद्वक्रितकन्धरः सपुलकप्रेमोल्लसन्मानसामन्तरेसलसत्कपोलफलकां धूर्ताऽपरां चुम्बति।। इस पद्य में जिस नायिका के नयन पिहित किये गये हैं, वह कनिष्ठा नायिका है। (3/79) ___ कन्यका-परकीया नायिका का एक प्रकार। अविवाहिता, लज्जावती, नवयौवना कन्या कही जाती है-कन्या त्वजातोपयमा सलज्जा नवयौवना। पिता आदि पर आश्रित होने के कारण वह परकीया कही जाती है। यथा मा.मा. आदि में मालती आदि। (3/83)
कपटम्-एक नाट्यालङ्कार। जहाँ मायादि के कारण अन्य ही रूप आभासित हो उसे कपट कहते हैं-कपटं मायया यत्र रूपमन्यद् विभाव्यते। यथा कुलपत्यङ्क का यह पद्य-मृगरूपं परित्यज्य विधाय कपटं वपुः। नीयते रक्षसा तेन लक्ष्मणो युधि संशयम्।। (6/210)
करणम्-मुखसन्धि का एक अङ्ग। प्रकृत कार्य के आरम्भ का नाम करण है-करणं पुनः प्रकृतार्थसमारम्भः। यथा वे.सं. में भीम का "देवि! गच्छामो वयमिदानीं कुरुकुलक्षयाय" यह कथन। (6/79)
करम्भकम्-विविध भाषाओं में निर्मित रचना को करम्भक कहते हैं-करम्भकं तु भाषाभिर्विविधाभिर्विनिर्मितम्। इसका उदाहरण स्वयं विश्वनाथरचित प्रशस्तिरत्नावली है जिसमें सोलह भाषाओं का प्रयोग हुआ है। (6/315)
करुणः--एक रस। यह इष्ट के नाश तथा अनिष्ट की प्राप्ति से निष्पन्न होता है। इसका स्थायीभाव शोक है। इसका वर्ण कपोत तथा देवता यम है। शोच्य व्यक्ति इसका आलम्बन तथा उसकी दाहादिक अवस्थायें उद्दीपन होती हैं। भाग्य की निन्दा, भूमि पर गिरना, चिल्लाना, विवर्णता, उच्छ्वास, निश्वास, स्तम्भ और प्रलाप इसके अनुभाव होते हैं तथा निर्वेद, मोह,