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________________ उल्लाप्यम् उल्लेख: परिवर्तन सह्य है। शशिशुभ्रांशु में दोनों ही पद बदले जा सकते हैं जबकि एक अन्य उदाहरण ' भाति सदानत्याग: ' में दोनों ही पद ( दान और त्याग ) अपरिवर्तनीय हैं। अतः कहीं पदपरिवृत्तिसहत्व तथा कहीं अपरिवृत्तिसहत्व होने के कारण यह उभयालङ्कार है। (10/2) 44 उल्लाप्यम्-उपरूपक का एक भेद । एक अङ्क में दिव्य कथावस्तु से युक्त, सङ्ग्राम और अस्त्रगीत से मनोहर, शिल्पक के सत्ताइस अङ्गों से युक्त, हास्य, शृङ्गार और करुण रसों से सम्पन्न उल्लाप्य नामक नाट्यप्रकार होता है। कुछ आचार्यों का मत है कि इसमें चार नायिकायें और तीन अङ्क होते हैं - उदात्तनायकं दिव्यवृत्तमेकाङ्कभूषितम्। शिल्पकाङ्गैर्युतं हास्य शृङ्गारकरुणै रसैः। उल्लाप्यं बहुसङ्ग्राममस्त्रगीतिमनोहरम्। चतस्रो नायिकास्तत्र त्रयोऽङ्का इति केचन ।। इसका उदाहरण देवीमहादेवम् है। (6/287) उल्लेख:- एक नाट्यालङ्कार। किसी कार्य का निर्देश करने को उल्लेख कहते हैं - कार्यदर्शनमुल्लेखः । यथा अ.शा. में राजा के प्रति तपस्वियों का यह कथन कि-समिदाहरणाय प्रस्थिता वयम्। न चेदन्यकार्यातिपातः, प्रविश्य गृह्यतामतिथिसत्कारः। यहाँ राजा के साथ न जा पाने के हेतु के रूप में समिदाहरण कार्य का निर्देश किया गया है। (6/223) उल्लेख:- एक अर्थालङ्कार। ग्रहीता अथवा विषय के भेद से एक वस्तु का अनेक प्रकार से उल्लेख करना उल्लेख अलङ्कार है - क्वचिद्भेदाद्ग्रहीतॄणां विषयाणां तथा क्वचित् । एकस्यानेकधोल्लेखो यः स उल्लेख उच्यते । . इस अलङ्कार में वस्तु के एक ही होने पर भी रुचि, अर्थित्व अथवा व्युत्पत्ति के अनुसार उसका ज्ञान भिन्न हो जाता है। तद्यथा - प्रिय इति गोपवधूभिः शिशुरिति वृद्धैरधीश इति देवैः । नारायण इति भक्तैर्ब्रह्मेत्यग्राहि योगिभिर्देवः ।। उदाहृत पद्य में एक ही कृष्ण ग्रहीता के भेद से प्रिय, शिशु, स्वामी, नारायण और ब्रह्म समझे जा रहे हैं। ये सभी धर्म कृष्ण में वास्तविक हैं, आरोपित नहीं, अतः यह मालारूपक नहीं है। इसके अतिरिक्त मालारूपक
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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