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________________ उपेक्षा 43 उभयालङ्कारः अर्थ का आक्षेप कर लिया जाता है वहाँ मुख्यार्थ के साथ - 2 अपना भी ग्रहण कराने से उपादान लक्षणा होती है - मुख्यार्थस्येतराक्षेपो वाक्यार्थेऽन्वयसिद्धये। स्यादात्मनोऽप्युपादानादेषोपादानलक्षणा । अतएव इसे ही अजहत्स्वार्था भी कहते हैं क्योंकि यहाँ लक्षक पद इतर का आक्षेप करता हुआ अपने अर्थ का त्याग नहीं करता । रूढ़िगत उपादानलक्षणा का उदाहरण 'श्वेतो धावति' तथा प्रयोजनवती उपादानलक्षणा का उदाहरण 'कुन्ताः प्रविशन्ति' है। यहाँ केवल श्वेत और कुन्त शब्दों से धावन और प्रवेशन क्रियाओं का अन्वय उपपन्न नहीं होता । अतएव उनसे सम्बद्ध अश्व और पुरुष शब्दों का आक्षेप करके अर्थ की सिद्धि की जाती है। 'श्वेतो धावति' में कोई प्रयोजन न होने के कारण रूढ़ि प्रधान है। 'कुन्ताः प्रविशन्ति' में कुन्तधारियों की अत्यन्त गहनता व्यञ्जित करना इसका प्रयोजन है। वैयाकरणाचार्य 'श्वेत' शब्द से रसादिभ्यश्च 5/2/95 से मतुप् प्रत्यय करके पुनः 'गुणवचनेभ्यो लुगिष्ट: ' से इसका लुक् कर देते हैं। अतः 'श्वेत' शब्द का अर्थ श्वेत और श्वेत वर्णवाला दोनों ही है। अ. को में भी इन शब्दों को गुण और गुणी दोनों ही अर्थों का वाचक बताया गया है परन्तु नैयायिक इस लुक् को स्वीकार नहीं करते। (2/10) उपेक्षा–नायिका का मान भङ्ग करने का एक उपाय। साम, भेद, दान और नति इन चारों उपायों के निष्फल हो जाने पर और उपाय न करके चुपचाप बैठ जाना उपेक्षा कहा जाता है - सामादौ तु परिक्षीणे स्यादुपेक्षावधीरणम्। (3/209) उभयालङ्कारः-अलङ्कार का एक भेद । जहाँ कहीं तो शब्द का परिवर्त्तन सह्य हो तथा कहीं असह्य हो वहाँ शब्दार्थोभयमूलक अलङ्कार होता है। इसका उदाहरण पुनरुक्तवदाभास है। भुजङ्गकुण्डली व्यक्तशशिशुभ्रांशुशीतगुः । जगन्त्यपि सदापायादव्याच्चेतोहरः शिवः । । इस पद्य में पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार है। अलङ्कार के स्थल ' भुजङ्गकुण्डली' में ' भुजङ्ग' शब्द में परिवर्तन होने पर भी अलङ्कार बना रहता है परन्तु 'कुण्डली' पद में परिवर्तन सह्य नहीं है। इसी उदाहरण में 'हरः शिवः' में द्वितीय पद में
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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