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________________ उपक्षेपः उन्मादः उन्मादः-एक व्यभिचारीभाव। काम, शोक, भय आदि के द्वारा चित्त का व्यामोह उन्माद है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के सोचसमझकर कार्य करने की शक्ति समाप्त हो जाती है तथा वह अनुचित कार्यों, यथा-विना कारण के हँसना, रोना, गाना, प्रलाप आदि करना प्रारम्भ कर देता है-चित्तसंमोह उन्मादः कामशोकभयादिभिः। अस्थानहासरुदितगीतप्रलपनादिकृत्।। यथा- भ्रातर्द्विरेफ भवता भ्रमता समन्तात् प्राणाधिका प्रियतमा मम वीक्षिता किम्। (झङ्कारमनुभूय सानन्दम्) ब्रूषे किमोमिति सखे कथयाशु तन्मे किं किं व्यवस्यति कुतोऽस्ति च कीदृशीयम्।। यहाँ नायिका को ढूँढते हुए नायक की उन्माददशा का वर्णन है। (3/167) उन्मादः-पूर्वराग में काम की सप्तम दशा। जड़ और चेतन के विषय में विवेकशून्य हो जाना उन्माद कहलाता है-उन्मादश्चापरिच्छेदश्चेतनाचेतनेष्वपि। यथा- भ्रातर्द्विरेफ भवता भ्रमता समन्तात्प्राणाधिका प्रियतमा मम वीक्षिता किम्। (झङ्कारमनुभूय सानन्दम्) षे किमोमिति सस्ने कथयाशु तन्मे किं किं व्यवस्यति कुतोऽस्ति च कीदृशीयम्।। यहाँ उन्मत्त होकर भ्रमर से नायिकाविषया सूचना प्राप्त करने का प्रयास वर्णित है। (3/196) उन्मादः-प्रवासविप्रलम्भ में काम की अष्टम दशा। जड़ और चेतन के विषय में विवेकशून्य हो जाना उन्माद कहा जाता है। (3/211) उपक्षेपः-मुखसन्धि का एक अङ्ग। काव्यार्थ की समुत्पत्ति को उपक्षेप कहते हैं-काव्यार्थस्य समुत्पत्तिरुपक्षेप इति स्मृतः। यहाँ काव्यार्थ से अभिप्राय इतिवृत्त रूप प्रस्तुत अभिधेय से है, अर्थात् यहाँ इतिवृत्तरूप काव्यार्थ का संक्षेप में उपक्षेपण किया जाता है। यथा वे. सं. का यह पद्यलाक्षागृहानलविषान्नसभाप्रवेशैः प्राणेषु वित्तनिचयेषु च नः प्रहत्यः। आकृष्य पाण्डववधूः परिधानकेशान् स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्ट्राः।। इस पद्य में पूर्वघटना के उल्लेख के साथ-2 भवत् तथा प्रस्तुत दशा का भी सूचन किया गया है। (6/69)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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