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________________ 35 उत्तरम् उत्प्रासनम् उत्तरम्-एक अर्थालङ्कार। उत्तर से यदि प्रश्न की प्रतीति हो तो उत्तर नामक अलङ्कार होता है-उत्तरं प्रश्नस्योत्तरादुन्नयो यदि। यथा नायिका के इस उत्तर-वीक्षितुं न क्षमा श्वश्रूः, स्वामी दूरतरं गतः। अहमेकाकिनी बाला, तवेह वसतिः कुतः।। से पथिक के प्रश्न की प्रतीति हो जाती है। प्रश्न होने पर यदि अनेक बार असम्भाव्य उत्तर दिया जाये तो भी यही अलङ्कार होता है-यच्चासकृदसम्भाव्यं सत्यपि प्रश्न उत्तरम्। यथा-का विषमा देवगतिः किं लब्धव्यं जनो गुणग्राही। किं सौख्यं सुकलत्रं किं दुर्ग्राह्यं खलो लोकः।। यहाँ अन्य पदार्थों के अपोह में वक्ता का तात्पर्य नहीं रहता, इसलिए यह परिसङ्ख्या से भिन्न है। यह अनुमान भी नहीं है क्योंकि अनुमान में साध्यसाधन दोनों का निर्देश आवश्यक होता है। यह काव्यलिङ्ग में भी अन्तर्हित नहीं हो सकता क्योंकि यहाँ उत्तर प्रश्न का हेतु नहीं होता। (10/107) उत्तेजनम्-एक नाट्यालङ्कार। अपना कार्य सिद्ध करने के लिए दूसरे को प्रेरित करने वाली कठारेवाणी उत्तेजन कही जाती है-उत्तेजनमितीष्यते, स्वकार्यसिद्धयेऽन्यस्य प्रेरणाय कठोरवाक्। यथा-इन्द्रजिच्चण्डवीर्योऽसि नाम्नैव बलवानसि। धिधिक् प्रच्छन्नरूपेण युध्यसेऽस्मद्भयाकुलः।। इस पद्य में मेघनाद का अन्तर्धान भङ्ग करने के लिए लक्ष्मण के द्वारा कठोर वाणी का प्रयोग किया गया है क्योंकि इसके विना उसपर कोई प्रहार किया जा पाना सम्भव नहीं था। (6/224) उत्थापकः-सात्वती वृत्ति का एक अङ्ग। शत्रु की उत्तेजित करने वाली वाणी उत्त्थापक कही जाती है-उत्तेजनकरी शत्रोर्वागुत्त्थापक उच्यते। यथा म.च, में राम के प्रति परशुराम की यह उक्ति-आनन्दाय च विस्मयाय च मया दृष्टोऽसि दु:खाय वा, वैतृष्ण्यं तु कुतोऽद्य सम्प्रति मम त्वदर्शने चक्षुषः। यन्माङ्गल्यसुखस्य नास्मि विषयः किंवा बहु व्याहतैरस्मिन्विस्मृतजामदग्न्यविजये पाणौ धनुर्जुम्भताम्।। (6/151) . उत्प्रासनम्-एक नाट्यालङ्कार। स्वयं को साधु मानने वाले असाधु का उपहास उत्प्रासन कहा जाता है-उत्प्रासनं तूपहासो योऽसाधौ साधुमानिनि।
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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