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उक्तप्रत्युक्तम्
उत्तमोत्तमकम् उक्तप्रत्युक्तम्-एक लास्याङ्ग। उक्ति-प्रत्युक्तियों से युक्त, उपालम्भ के सहित, अलीक के समान प्रतीत होने वाला विलासपूर्ण अर्थ से सम्पन्न गीत उक्तप्रत्युक्त कहा जाता है-उक्तिप्रत्युक्तिसंयुक्तं सोपालम्भमलीकवत्। विलासान्वितगीतार्थमुक्तप्रत्युक्तमुच्यते।। (6/251)
उग्रता-एक व्यभिचारीभाव। स्वभाव की प्रचण्डता को उग्रता कहते हैं जो शत्रु के शौर्य अथवा अपराध आदि से उत्पन्न होती है। पसीना आ जाना, शिर में कम्पन, तर्जन और ताडन आदि इसके अनुभाव हैं-शौर्यापराधादिभवं भवेच्चण्डत्वमुग्रता। तत्र स्वेदशिर:कम्पतर्जनाताडनादयः।। यथा-प्रणयिसखीसलीलपरिहासरसाधिगतैर्ललितशिरीषपुष्पहननैरपि ताम्यति यत्। वपुषि वधाय तत्र तव शस्त्रमुपक्षिपतः पततु शिरस्यकाण्डयमदण्ड इवैष भुजः।। (3/155)
उच्छ्वासः-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) उत्कण्ठा-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295)।
उत्कलिकाप्रायः-गद्य का एक प्रकार। दीर्घसमासयुक्त गद्यरचना उत्कलिकाप्राय कही जाती है-अन्यद् (उत्कलिकाप्रायम्) दीर्घसमासाढ्यम्। यथा-अणिसविसअणिसिदसरविसरविदलितपरिहगदपरबल। सुबन्धु आदि की रचनाओं में इस प्रकार का गद्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। (6/310)
उत्कीर्तनम्-एक नाट्यालङ्कार। अतीत कार्य के आख्यान को उत्कीर्तन कहते हैं-भूतकार्याख्यानमुत्कीर्तनं मतम्। यथा बालरामायण का यह पद्य-अत्रासीत्फणिपाशबन्धनविधिः शक्त्या भवद्देवरे। गाढं वक्षसि ताडिते हनुमता द्रोणाद्रिरत्राहृतः ।। (6/232)
उत्तमोत्तमकम्-एक लास्याङ्ग। कोप अथवा प्रसाद से उत्पन्न होने वाला, आक्षेप-वचनों से युक्त, रसवत्, हाव और हेला से संयुक्त, विचित्र पद्यरचना से मनोहर गान उत्तमोत्तमक कहा जाता है-उत्तमोत्तमकं पुनः, कोपप्रसादजमधिक्षेपयुक्तं रसोत्तरम्। हावहेलान्वितं चित्रश्लोकबन्धमनोहरम्। (6/250-51)