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(vi) सर्वथा मौलिकता का तो कोई दावा नहीं किया जा सकता परन्तु साहित्यदर्पणकार के पक्ष को यथाशक्ति प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। काव्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र के अन्य आचार्यों का मत भी केवल वहीं पर उद्धृत किया गया है जहाँ वह साहित्यदर्पणकार के अभिप्राय को स्पष्ट करने के लिए उपयोगी प्रतीत हुआ। प्रत्येक प्रविष्टि के साथ उसका सन्दर्भ भी दे दिया गया है। इसके लिए भारतीय बुक कार्पोरेशन से दो टीकाओं, कविराज के पुत्र अनन्तदासकृत लोचन तथा भट्टाचार्य महेश्वर तर्कालङ्कारकृत विज्ञप्रियासहित 1988 में दो भागों में प्रकाशित संस्करण का उपयोग किया गया है। अन्य भी जिन अनेक ग्रन्थों की सहायता विषय को समझने के लिए ली गयी है, उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। पूज्य गुरुपाद प्रो. व्रजमोहन चतुर्वेदी के पुण्य आशीर्वाद से ही काव्यशास्त्र में मुझे प्रवेश करने का साहस हो पाया है, उनका कृतज्ञ हूँ। प्रारम्भ में आशीर्वाद देकर उन्होंने मुझे उपकृत किया है। पुस्तक को शीघ्र प्रकाशित करने के लिए विद्यानिधि प्रकाशन भी धन्यवादाह है।
-रमण कुमार शर्मा