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________________ (v) प्ररोचना संस्कृत काव्यशास्त्र के इतिहास में साहित्यदर्पण एक द्वितीय श्रेणी का लक्षणग्रन्थ है। केवल रससिद्धान्त की काव्यात्मा के रूप में प्रतिष्ठा आचार्य विश्वनाथ ने अवश्य की और इसी के कारण उन्हें सहृदयों की ओर से प्रभूत सम्मान भी मिला, इसके अतिरिक्त काव्यशास्त्र की परम्परा में कोई मौलिक सिद्धान्त कविराज ने इस लक्षणग्रन्थ के माध्यम से नहीं दिया पुनरपि उनके साहित्यदर्पण में कुछ ऐसा वैशिष्ट्य अवश्य है कि विद्वान् इस ग्रन्थ को शताब्दियों से पर्याप्त आदर देते रहे हैं। आज भी भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों में संस्कृत काव्यशास्त्र के छात्रों को साहित्य के सामान्य सिद्धान्तों का परिचय कराने के लिए इस ग्रन्थ को पाठ्यक्रम में निर्धारित किया गया है क्योंकि साहित्यसमीक्षा के लगभग सभी सिद्धान्त इसमें सामान्य रूप से विवेचित हुए हैं जो शास्त्र में प्रवेशार्थी छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। विषयों के विवेचनक्रम में आचार्य अनावश्यक शास्त्रार्थ में प्रवृत्त नहीं हुआ परन्तु अवश्यवर्णनीय विषय को उसने यथासम्भव छोड़ा भी नहीं। श्रव्यकाव्य के साथ-साथ दृश्यकाव्य का भी विवेचन होने के कारण यह एक समग्र लक्षण-ग्रन्थ बन गया है। इन दोनों के लिए समन्वित रूप से 'साहित्य' पद का प्रयोग किया गया है। लक्षणों के विषय में मौलिक न होकर भी यह ग्रन्थ विषय को स्पष्ट करने में अवश्य समर्थ है परन्तु आज अध्ययन का माध्यम संस्कृत न रहने के कारण छात्रों को इसे हृदयङ्गम करने में भी समस्या होती है। अतएव उनके परितोष के लिए अनावश्यक विस्तार से बचते हुए इसके एक पदानुक्रमकोश के निर्माण की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। उच्च स्तर पर साहित्यशास्त्र का अध्ययन करने वाले संस्कृत और हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए तो इसका उपयोग होना ही चाहिए, काव्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र के पारिभाषिक शब्दों का परिचय देने के कारण एक अर्थ में साहित्यशास्त्र के एक सन्दर्भग्रन्थ के रूप में शोधार्थियों के लिए भी उपादेय हो सके. इसी उद्देश्य की पूर्ति में मेरे इस श्रम की सफलता निहित है।
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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