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________________ आङ्गिक : आनन्दः अपरवक्त्र छन्दों में निबद्ध होते हैं। कथांशों का विभाजन आश्वास नाम से किया जाता है। उनके प्रारम्भ में उपर्युक्त छन्दों अथवा अन्योक्ति से भावी कथावस्तु की सूचना दी जाती है - आख्यायिका कथावत्सा कवेर्वंशादिकीर्त्तनम्। अस्यामन्यकवीनाञ्च तथा वृत्तं क्वचित् क्वचित् । कथांशानां व्यवच्छेद आश्वास इति बध्यते । आर्यावक्त्रापवक्त्राणां छन्दसा येनकेनचित् । अन्यापदेशेनाश्वासमुखे भाव्यर्थसूचनम् ।। इसका उदाहरण हर्षचरित आदि हैं। 28 भामहादि आचार्यों का मत है कि आख्यायिका में नायक स्वयम् अपनी कथा कहता है - वृत्तमाख्यायते तस्यां नायकेन स्वचेष्टितम् । परन्तु इसका खण्डन आचार्य दण्डी के द्वारा पहले ही कर दिया गया है- अपि त्वनियमो दृष्टस्तत्राप्यन्यैरुदीरणात्। ( 6/312) आङ्गिक :- अभिनय का एक प्रकार । शिर, हाथ, वक्ष, पार्श्व, कटि तथा पैर इन छह अङ्गों तथा नेत्र, भ्रू, नासा, अधर, कपोल तथा चिबुक इन छह उपाङ्गों के द्वारा अनुकार्य रामादि की चेष्टाओं का अनुकरण आङ्गिक अभिनय है। (6/3) आदानम्-विमर्शसन्धि का एक भेद । समस्त कार्यों को सगृहीत कर देना आदान कहा जाता है - कार्यसङ्ग्रह आदानम् । यथा वे.सं. में - नाहं रक्षो न भूतो रिपुरुधिरजलाक्लेदिताङ्गः प्रकामं, निस्तीर्णोरुप्रतिज्ञाजलनिधिगहन: क्रोधनः क्षत्रियोऽस्मि । भो भो राजन्यवीराः समरशिखिशिखाभुक्तशेषाः कृतं वस्त्रासेनानेन लीनैर्हतकरितुरगान्तर्हितैरास्यते यत् ।। इस पद्य में समस्त शत्रुओं का वध सङ्गृहीत किया गया है। (6/121) आधिकारिकम् - कथावस्तु का एक प्रकार । काव्य के प्रधानफल का स्वामित्व अधिकार कहा जाता है और उस फल का स्वामी अधिकारी होता है। अधिकारी की कथा को ही आधिकारिक वस्तु कहा जाता है - अधिकारः फले स्वाम्यमधिकारी च तत्प्रभुः । तस्येतिवृत्तं कविभिराधिकारिकमुच्यते ।। यथा, रामायण में राम अधिकारी है, अतः उसकी कथा आधिकारिक कही जायेगी। (6/24) आनन्दः - निर्वहणसन्धि का एक अङ्ग । अभीष्ट की प्राप्ति को आनन्द
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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