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आक्रन्दः
आख्यायिका ही, विना कही गयी बात को भी सुनते से हुए जो 'क्या कहते हो', इस प्रकार का कथन किया जाता है उसे आकाशभाषित कहते हैं-किं ब्रवीषीति यन्नाट्ये विना पात्रं प्रयुज्यते। श्रुत्वेवानुक्तमप्यर्थं तत्स्यादाकाशभाषितम्।। (6/161)
आक्रन्दः-एक नाट्यालङ्कार। शोक से विलाप करना आक्रन्द कहा जाता है-आक्रन्दः प्रलपितं शुचा। यथा, वे. सं. में कञ्चुकी का, हा देवि कुन्ति! राजभवनपताके! आदि संवाद। (6/209)।
आक्षेपः-एक अर्थालङ्कार। विवक्षित वस्तु के वैशिष्ट्य का प्रतिपादन करने के लिए उसका निषेध सा करना आक्षेपालङ्कार कहा जाता है-वस्तुनो वक्तुमिष्टस्य विशेषप्रतिपत्तये। निषेधाभास आक्षेपः . . . . .। यह दो प्रकार का हो सकता है-(1) वक्ष्यमाण वस्तु का निषेध करने पर तथा (2) उक्त वस्तु का निषेध करने पर। वक्ष्यमाणविषय में कभी सामान्य रूप से सूचित सारी वस्तु का निषेध कर दिया जाता है, कभी उसका एक अंश कहकर दूसरे अंश का निषेध होता है। उक्त विषय में भी कहीं वस्तु के स्वरूप का निषेध होता हैं कहीं उसके कथन का। इस प्रकार आक्षेप के चार भेद निष्पन्न होते हैं। __ आक्षेपालङ्कार का एक दूसरा रूप भी है जहाँ अनिष्ट का विधान आभासित होता है-अनिष्टस्य तथार्थस्य विध्याभासः परो मतः। यथा-गच्छ गच्छसि चेत्कान्त पन्थानः सन्तु ते शिवाः। ममापि जन्म तत्रैव भूयाद्यत्र गतो भवान्।। यहाँ गमन की विधि अन्ततः गमन के निषेध में अवसित होती है। अतः यह विध्याभास है। (10/85-86) ___आख्यानम्-एक नाट्यालङ्कार। पूर्व इतिहास का कथन आख्यान कहा जाता है-आख्यानं पूर्ववृत्तोक्तिः। यथा, वे.सं. में अश्वत्थामा की उक्ति-देशः सोऽयमरातिशोणितजलैर्यस्मिन् हृदाः पूरिताः।। (6/237)
आख्यायिका-गद्यकाव्य का एक भेद। सामान्य रूप से आख्यायिका कथा के ही समान होती है परन्तु इसमें कवि के पास अवसर होता है कि वह अपने वंश का तथा कही-2 अन्य कवियों का वृत्तान्त भी वर्णित करता है। मध्य-2 में कहीं-2 पद्यों का भी निवेश होता है जो आर्या, वक्त्र अथवा