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हास्यः
हल्लीश:
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हल्लीश:[:- उपरूपक का एक भेद। यह लय और ताल से युक्त एकाङ्की उपरूपक है जिसमें सात, आठ अथवा दस स्त्रीपात्र तथा एक ही उदात्त वचन बोलने वाला पुरुष होता है। यह रचना मुख और निर्वहण सन्धि तथा कैशिकी वृत्ति से सम्पन्न होती है - हल्लीश एक एवाङ्कः, सप्ताष्टौ दश वा स्त्रियः । वागुदात्तैकपुरुषः, कैशिकीवृत्तिसङ्कुलः । मुखान्तिमौ तथा सन्धी बहुताललयस्थितिः । इसका उदाहरण केलिरैवतकम् है। (6/299)
हसितम्-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार । यौवन के उद्गम पर उत्पन्न होने वाला अकारण हास हसित कहा जाता है- हसितं तु वृथा हासो यौवनोद्भेदसम्भवः । यथा - अकस्मादेव तन्वङ्गी जहास यदियं पुनः । नूनं प्रसूनबाणोऽस्यां स्वाराज्यमधितिष्ठति ।। (3 / 129)
हसितम् - हास्य का एक भेद । जहाँ नेत्रविकास तथा अधरों के स्फुरण के साथ हँसते हुए दाँत कुछ-कुछ दिखाई दें उसे हसित कहते हैं- किञ्चिद्विलक्ष्यद्विजं तत्र हसितं कथितं बुधैः । यह उत्तम प्रकृति के लोगों का हास्य है। (3/221 )
हाव:-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार । यह अङ्गज विकार है। भ्रू तथा नेत्रादि के विकारों से सम्भोग की इच्छा का सूचक, मनोविकार का अल्पप्रकाशित भाव ही हाव कहा जाता है- भ्रूनेत्रादिविकारैस्तु सम्भोगेच्छाप्रकाशकः । भाव एवाल्पसंलक्ष्यविकारो हाव उच्चते । । यथा- विवृण्वती शैलसुतापि भावमङ्गैः स्फुरद्बालकदम्बकल्पैः । साचीकृता चारुतरेण तस्थौ मुखेन पर्यस्तविलोचनेन | | ( 3 / 105 )
हास:- हास्य रस का स्थायीभाव । विकृत वाणी आदि को देखकर उत्पन्न होने वाली चित्तवृत्ति की विकसित हो जाने की स्थिति को हास कहते हैं- वागादिवैकृतैश्चेतोविकासो हास इष्यते । (3/186)
हास्य :- एक रस । हास्य रस का स्थायीभाव चित्त की हास नामक वृत्ति होती है। विकृत आकार, वाणी, वेष, चेष्टा आदि से तथा काँख अथवा गरदन पर गुदगुदाने से यह उत्पन्न होता है । विकृत आकार, वाणी और चेष्टाओं वाले जिस व्यक्ति को देखकर हास्य उत्पन्न हो, वह उसका आलम्बन तथा उसकी चेष्टायें उद्दीपन विभाव होती हैं। इसके अनुभाव नेत्रों का मुकुलित