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________________ स्मृति: 221 स्वप्नः को देखकर प्रिय अथवा उसकी किसी सदृश वस्तु का स्मरण हो आना स्मृति कहा जाता है। यथा-मयि सकपटं किञ्चित्क्वापि प्रणीतविलोचने, किमपि नयनं प्राप्ते, तिर्यग्विजृम्भिततारकम् । स्मितमुपगतामालीं दृष्ट्वा सलज्जभवाञ्चितं, कुवलयदृशः स्मेरं स्मेरं स्मरामि तदाननम् ।। (3/195) स्मृति: - एक व्यभिचारी भाव । स्मृति पूर्वानुभूत वस्तु के स्मरण से उत्पन्न होने वाला ज्ञान है जो उसके सदृश किसी अन्य वस्तु के दर्शन अथवा चिन्तनादि से उत्पन्न होता है। इसमें भौहों का चढ़ना आदि होता है - सदृशज्ञानचिन्ताद्यैर्भूसमुन्नयनादिकृत् । स्मृतिः पूर्वानुभूतार्थविषयज्ञानमुच्यते । । यथा - मयि सकपटं किञ्चित्क्वापि प्रणीतविलोचने, किमपि नयनं प्राप्ते सलज्जभवाञ्चितं कुवलयदृशः स्मेरं स्मेरं स्मरामि तदाननम् ।। (3/169) स्वकीया-नायिका का एक भेद । विनय, सरलता आदि गुणों से युक्त, गृहकर्म में परायण पतिव्रता स्त्री स्वकीया कही जाती है- विनयार्जवादियुक्ता गृहकर्मपरा पतिव्रता स्वीया । यथा - लज्जापर्याप्तसाधनानि परभर्तृनिष्पिपासानि । अविनयदुर्मेधांसि धन्यानां गृहे कलत्राणि ।। यह मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा के रूप में तीन प्रकार की होती है । (3/69-70) स्वगतम् - नाट्योक्ति का एक प्रकार । जो कथन किसी दूसरे पात्र को सुनाने योग्य नहीं होता उसे स्वगत कहते हैं - अश्राव्यं खलु यद्वस्तु तदिह स्वगतं मतम्। परन्तु पात्र उस बात को इस प्रकार से प्रस्तुत करता है जिससे उसे सामाजिक सुन लें। (6/161 ) स्वप्नः - एक व्यभिचारीभाव । निद्रा में निमग्न पुरुष के विषयानुभव करने का नाम स्वप्न है। इसमें कोप, आवेग, भय, ग्लानि, सुख, दुःखादि होते हैं - स्वप्नो निद्रामुपेतस्य विषयानुभवस्तु यः । कोपावेगभयग्लानिसुखदुःखादिकारकः । । यथा-मामाकाशप्रणिहितभुजं निर्दयाश्लेषहेतोर्लब्धायास्ते कथमपि मया स्वप्नसन्दर्शनेषु । पश्यन्तीनां न खलु बहुशो न स्थलीदेवतानां, मुक्तास्थूलास्तरुकिसलयेष्व श्रुलेशाः पतन्ति । । मेघदूत के इस पद्य में यक्ष की स्वप्नस्थिति का वर्णन है। (3/158)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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