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________________ श्रमः शोकः 198 हसता बाला चिरं चुम्बिता। । इस पद्य में नायक और नायिका आलम्बन, शून्य वासगृह उद्दीपन, लज्जा और हास व्यभिचारीभाव तथा चुम्बन अनुभाव है। इनके द्वारा अभिव्यक्त सहृदयविषयक रतिभाव शृङ्गाररस के रूप को प्राप्त कर रहा है। यह दो प्रकार का होता है - विप्रलम्भ और सम्भोग । विप्रलम्भ के पुनः चार भेद हैं- पूर्वराग, मान, प्रवास और करुण । (3/189-92) शोक:- करुण रस का स्थायीभाव । इष्टनाशादि के कारण चित्त का व्याकुल हो जाना शोक कहा जाता है- इष्टनाशादिभिश्चेतोवैक्लव्यं शोकशब्दभाक्। यह भाव मूलतः अर्थप्रधान है। इष्ट व्यक्ति, पुत्रादि ही अभ्यर्थनीय होने के कारण अर्थ कहे जाते हैं । ( 3 / 186 ) शोभा-नायक का सात्त्विक गुण । शूरता, चतुरता, सत्य, महान् उत्साह, अनुरागिता, नीच में घृणा तथा उच्च में स्पर्धा उत्पन्न करने वाले अन्त:करण के धर्म को शोभा कहते हे शूरतादक्षतासत्यं महोत्साहोऽनुरागिता । नीचे घृणाधिके स्पर्धा यतः शोभेति तां विदुः ।। (3/62) शोभा-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार । रूप, यौवन, लालित्य, भोग आदि से उत्पन्न अङ्गों की सुन्दरता शोभा कही जाती है-रूपयौवनलालित्यभोगाद्यैरङ्गभूषणम् । शोभा प्रोक्ता ... । यथा - असम्भृतं मण्डनमङ्गयष्टेरनासवाख्यं करणं मदस्य कामस्य पुष्पव्यतिरिक्तमस्त्रं बाल्यात्परं साथ वयः प्रपेदे । । इस पद्य में यौवन से उत्पन्न शोभा का वर्णन है। (3/107) शोभा - एक नाट्यलक्षण । श्लिष्ट विचित्र अर्थ वाली पदावली में जहाँ प्रसिद्ध अर्थ के साथ अभीष्ट अर्थ भी प्रकाशित किया जाये, उसे शोभा कहते हैं - सिद्धैरर्थैः समं यत्राप्रसिद्धोऽर्थः प्रकाशते । श्लिष्टलक्षणचित्रार्था सा शोभेत्यभिधीयते । यथा सद्वंशसम्भवः शुद्धः कोटिदोऽपि गुणान्वितः । कामं धनुरिव क्रूरो वर्जनीयः सतां प्रभुः । । इस पद्य में प्रसिद्ध धनुष के साथ अप्रसिद्ध क्रूर व्यक्ति का श्लिष्ट वर्णन किया गया है। (6/173) श्रमः - एक व्यभिचारीभाव । रति तथा मार्ग पर चलने आदि से उत्पन्न
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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