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________________ शापजन्यप्रवासः 196 शुद्धालक्षणा नहीं हुआ। दयावीरादि यदि सर्वथा अहङ्काररहित हो जायें तो उनका शान्त में अन्तर्भाव हो सकता है। दुःख, सुख, चिन्ता, द्वेष, राग, इच्छा सबके समाप्त हो जाने पर ही शान्त रस होता है। शान्त दशा में सुख के अभाव से तात्पर्य है विषयों के सुख का अभाव परन्तु यह शम मोक्ष दशा वाला शम नहीं होता, अतएव सञ्चारी आदि भावों की स्थिति यहाँ बन जाती है। युक्त, वियक्त और युक्तवियुक्त दशा में अवस्थित शम ही शान्त रस के रूप में परिणत होता है। (3/232) शापजन्यप्रवास:-प्रवासविप्रलम्भ का एक प्रकार। किसी शाप के कारण नायक के अन्य देश में चले जाने पर जो विप्रलम्भ होता है, उसे शापजन्य वियोग कहते हैं। मेघदूतादि इसके उदाहरण हैं। (3/210) शाब्दीव्यञ्जना-व्यञ्जना का एक भेद। व्यञ्जना की एक विशेषता यह है कि वह शब्द और अर्थ दोनों का व्यापार है। शब्द जिस व्यापार से व्यङ्ग्यार्थ की प्रतीति कराता है उसे शाब्दी व्यञ्जना कहते हैं। यह दो प्रकार की है-अभिधामूला और लक्षणामूला-अभिधालक्षणामूला शब्दस्य व्यञ्जना द्विधा। (2/20) शिल्पकम्-उपरूपक का एक भेद। इसमें चार अङ्क तथा चारों वृत्तियाँ होती हैं और श्मशान आदि का वर्णन अवश्य होता है। इसका नायक ब्राह्मण तथा उपनायक हीन कोटि का होता है। शान्त तथा हास्य के अतिरिक्त सभी रस होते हैं- चत्वारः शिल्पकेऽङ्काः स्युश्चतम्रो वृत्तयस्तथा। अशान्तहास्याश्च रसा नायको ब्राह्मणो मतः। वर्णनात्र श्मशानादेहीनः स्यादुपनायकः। इसके सताईस अङ्ग होते हैं-आशंसा, तर्क, सन्देह, ताप, उद्वेग, प्रसक्ति, प्रयत्न, ग्रथन, उत्कण्ठा, अवहित्त्था, प्रतिपत्ति, विलास, आलस्य, वाष्प, प्रहर्ष, आश्वास, मूढ़ता, साधना, अनुगम, उच्छ्वास, विस्मय, प्राप्ति, लाभ, विस्मृति, सम्फेट, वैशारद्य, प्रबोधन और चमत्कृति (ये संख्या में अठाईस बनते हैं) इसका उदाहरण कनकवतीमाधव है। (6/295) शुद्धालक्षणा-लक्षणा का एक भेद। चार प्रकार की सारोपा तथा चार
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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