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शकार:
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शब्दालङ्कारः शकार:- राजा का सहायक। मदान्ध, मूर्ख, अभिमानी, नीच कुल में उत्पन्न, सम्पत्ति से युक्त, नायक की अविवाहिता पत्नी का भाई, अतएव राजा का साला शकार कहा जाता है-मदमूर्खताभिमानी दुष्कुलतैश्वर्यसंयुक्तः । सोऽयमनूढ़ा भ्राता राज्ञः श्यालः शकार इत्युक्तः 11 (3 /53)
शक्ति :- विमर्शसन्धि का एक अङ्ग । विरोध के प्रशमन को शक्ति कहते हैं- शक्तिः पुनर्भवेद्विरोधस्य प्रशमनम् । इसका उदाहरण वे.सं. का यह पद्य है - कुर्वन्त्वाप्ता हतानां रणशिरसि नरा वह्निसाद्देहभारान्, अनैर्मिश्रं कथञ्चिद्ददतु जलममी बान्धवा बान्धवेभ्यः । मार्गन्तां ज्ञातिदेहान् हतनरगहने खण्डितान् गृध्रकाकैः, अस्तं भास्वान्प्रयातः सह रिपुभिरयं संह्रियन्तां बलानि ।। (6/115)
शङ्का - एक व्यभिचारीभाव । अपने अनिष्ट के विषय में सन्देह का नाम शङ्का है जो दूसरे की क्रूरता अथवा अपने किसी दोष के कारण उत्पन्न होती है। इसके द्वारा विवर्णता, कम्पन, स्वरभङ्ग होना, इधर-उधर देखना, मुख का सूखना आदि होता है - परक्रौर्यात्मदोषाद्यैः शङ्कानर्थस्य तर्कणम् । वैवर्ण्यकम्पवैस्वर्य पार्वालोकास्यशोषकृत् ।। यथाप्राणेशेन प्रहितनखरेष्वङ्गकेषु क्षपान्ते, जातातङ्का रचयति चिरं चन्दनालेपनानि । धत्ते लाक्षामसकृदधरे दत्तदन्तावघाते, क्षामाङ्गीयं चकितमभितश्चक्षुषी विक्षिपन्ती । इस पद्य में प्रिय के द्वारा दिये गये दन्तक्षत तथा नखक्षत को छुपाने का प्रयास करती हुई नायिका की शङ्का वर्णित हुई है। (3/168)
शठ:- नायक का एक भेद । जो वस्तुतः एक नायिका से प्रेम करे परन्तु बाहर से दोनों नायिकाओं के प्रति प्रेम प्रदर्शित करे तथा प्रच्छन्न रूप से दूसरी नायिका का अप्रिय करे, वह शठ नायक होता है - शठोऽयमेकत्र बद्धभावो यः। दर्शितबहिरनुरागो विप्रियमन्यत्र गूढ़माचरति । यथा - शठान्यस्याः काञ्चीमणिरणितमाकर्ण्य सहसा, यदाश्लिष्यन्नेव प्रशिथिलभुजग्रन्थिरभवः । तदेतत्क्वाचक्षे धृतमधुमयत्वाद्बहुवचो - विषेणाघूर्णन्ती किमपि न सखी मे गणयति ।। (3/45)
शब्दालङ्कारः-अलङ्कार का एक भेद । जहाँ शब्द का परिवर्तन कर