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व्याजोक्तिः
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व्यायोगः स्तुतिः) व्यङ्ग्य हो तो व्याजस्तुति नामक अलङ्कार होता है-निन्दास्तुतिभ्यां वाच्याभ्यां गम्यत्वे स्तुतिनिन्दयोः। इसके इन दोनों रूपों के उदाहरण क्रमशः इस प्रकार हैं-स्तनयुगमुक्ताभरणाः कण्टककलिताङ्गयष्टयो देव। त्वयि कुपितेऽपि प्रागिव विश्वस्ता द्विस्त्रियो जाताः।। तथा, व्याजस्तुतिस्तव पयोद मयोदितेयं यज्जीवनाय जगतस्तव जीवनानि। स्तोत्रं तु ते महदिदं घन धर्मराजसाहाय्यमर्जयसि यत्पथिकान्निहत्य।। (10/78) ____ व्याजोक्तिः -एक अर्थालङ्कार। प्रकट हुई वस्तु का किसी बहाने से छुपाना व्याजोक्ति कहलाता है-व्याजोक्तिर्गोपनं व्याजादुद्भिन्नस्यापि वस्तुनः। यथा-शैलेन्द्रप्रतिपाद्यमानगिरिजाहस्तोपगूढोल्लसद्, रोमाञ्चादि विसंस्थुलाखिलविधिव्यासङ्गभङ्गाकुलः। आः शैत्यं तुहिनाचलस्य करयोरित्यूचिवान् सस्मितं, शैलान्त:पुरमातृमण्डलगणैर्दृष्टोऽवताद् वः शिवः।। विवाहसंस्कार के समय पार्वती के करस्पर्श से होने वाले रोमाञ्च को छिपाने के लिए शिव ने "हिमाचल में बहुत शैत्य है" ऐसा कहा परन्तु हँसते हुए मातृमण्डल के द्वारा वे देख लिये गये।
यहाँ उपमेय का कथन नहीं है, इसलिए प्रथम अपहनुति नहीं हो सकती। द्वितीय अपहनुति में तो गोप्ता गोप्य वस्तु का स्वयं कथन कर देता है, फिर छिपाता है। यहाँ ऐसी बात नहीं है। (10/120)
व्याधिः-एक व्यभिचारीभाव। वात, पित्त और कफ के सन्निपात से ज्वर आदि का होना व्याधि कहा जाता है। यह ज्वर यदि सदाह हो तो भूमि पर लेटने आदि की इच्छा होती है और यदि सशीत हो तो कम्प आदि होते हैं-व्याधिवरादिवाताद्यैर्भूमीच्छोत्कम्पनादिकृत्। (3/171)
व्याधिः-पूर्वराग में काम की अष्टम दशा। दीर्घ निश्वास, पाण्डुता, कृशता आदि व्याधि कहे जाते हैं-व्याधिस्तु दीर्घनिश्वासपाण्डुताकृशतादयः। यथा-पाण्डुक्षामं वदनं हृदयं सरसं तवालसं च वपुः। आवेदयति नितान्तं क्षेत्रियरोगं सखि ! हृदन्तः।। यहाँ नायिका का पाण्डुक्षाम वदन, सरस हृदय, अलसाया हुआ शरीर उसकी असाध्य व्याधि की सूचना देता है। (3/197)
व्यायोगः-रूपक का एक भेद। एक अङ्क की इस विधा में गर्भ और विमर्श सन्धियाँ नहीं होतीं। युद्ध का वर्णन होता है परन्तु उसका कारण स्त्री