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________________ 182 व्यञ्जना वेपथुः वेपथुः-एक सात्त्विक अनुभाव। राग, द्वेष तथा श्रमादि से उत्पन्न अङ्गों के कम्पन को वेपथु कहते हैं-रागद्वेषश्रमादिभ्यः कम्पो गात्रस्य वेपथुः। (3/146) __ वैदर्भी-रीति का एक प्रकार। माधुर्यव्यञ्जक वर्णों से युक्त, लालित्यपूर्ण तथा समासरहित अथवा अल्पसमासों से युक्त रचना वैदर्भी रीति कही जाती है-माधुर्यव्यञ्जकैर्वर्णैः रचना ललितात्मिका। अवृत्तिरल्पवृत्तिर्वा वैदर्भी रीतिरिष्यते।। यथा-अनङ्गमङ्गलभुवस्तदपाङ्गस्य भङ्गयः। जनयन्ति मुहुर्दूनामन्त:- सन्तापसन्ततिम्।। रुद्रट ने इन गुणों के अतिरिक्त इसमें श्लेषादि दशगुणों की स्थिति भी मानी है। (9/3) . वैवर्ण्यम्-एक सात्त्विक अनुभाव। विषाद, मद, क्रोध आदि के कारण यदि अन्य ही वर्ण मुख से निकलें तो उसे वैवर्ण्य कहते हैं-विषादमदरोषाद्यैर्वर्णान्यत्वं विवर्णता। (3/146) वैशारद्यम्-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) - व्यङ्ग्यः -अर्थ का एक प्रकार। शब्द की व्यञ्जना शक्ति से बोध्य अर्थ को व्यङ्ग्यार्थ कहते हैं-व्यङ्ग्यो व्यञ्जनया। (2/6) व्यञ्जक:-शब्द का एक प्रकार। व्यञ्जना शक्ति जिसका व्यापार है, वह व्यञ्जनोपाधिक शब्द व्यञ्जक कहा जाता है। यह व्यङ्ग्यार्थ का बोध कराता है। (2/26) व्यञ्जना-शब्द की एक शक्ति। 'शब्दबुद्धिकर्मणां विरम्य व्यापाराभावः' इस सिद्धान्त के अनुसार अभिधा, लक्षणा और तात्पर्या वृत्तियों के अपना-अपना कार्य समाप्त करके विरत हो जाने पर जिस शक्ति के द्वारा अन्य अर्थ का बोध कराया जाता है, शब्द तथा अर्थ आदि की उस वृत्ति को व्यञ्जना कहते हैं। 'आदि' पद से प्रकृति, प्रत्यय, उपसर्ग आदि का बोध होता है-विरतास्वभिधाद्यासु ययार्थो बोध्यते परः। सा वृत्तिर्व्यञ्जना नाम शब्दस्यार्थादिकस्य च। यही व्यञ्जना ध्वनन, गमन, प्रत्यायन आदि संज्ञाओं से भी अभिहित होती है। अभिधा और लक्षणा से इसका वैशिष्ट्य यह भी है कि यह शब्द के साथ-साथ अर्थ की भी वृत्ति है। इस प्रकार इसके
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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