SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृत्तिः 181 वृत्त्यनुप्रासः कोदण्डशिञ्जिनीटङ्कारोज्जागरितवैरिनगर०, इत्यादि पंक्ति उद्धृत की है। यहाँ 'कुण्डलीकृतकोदण्ड' इस अंश में अनुष्टुप् का एक चरण आपतित है। (6/310) __ वृत्तिः-नाट्यवृत्ति। वृत्ति शब्द वृत् से क्तिन् प्रत्यय होकर निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है-जिसके द्वारा जीवन के व्यवहार का प्रवर्तन किया जाये। वृत्ति शरीर, वाणी और मन का व्यापार ही है जिसका सम्बन्ध प्रधानतः नायक के साथ है परन्तु नायक के सभी व्यापार वृत्ति नहीं कहे जा सकते, अतएव आचार्य धनिक ने उसके साथ 'प्रवृत्तिरूप' विशेषण का प्रयोग किया है-प्रवृत्तिरूपो नेतृव्यापारस्वभावो वृत्तिः। आचार्य विश्वनाथ इसी भाव को 'विशेष' विशेषण के प्रयोग से अभिव्यक्त करते हैं-नायकादिव्यापारविशेषा नाटकादिषु। कवि नायक के इन सब आङ्गिक, वाचिक और मानसिक व्यापारों को अपने मन में रखकर ही कथावस्तु में उसके चरित्र की सृष्टि करता है। अतएव वृत्तियों के लिए 'नाट्यमातृकाः' विशेषण का प्रयोग करना भी साभिप्राय ही है-चतम्रो वृत्तयो ह्येता सर्वनाट्यस्य मातृकाः। इस प्रकार भरत का यह कथन भी समीचीन ही प्रतीत होता है कि इन्हीं चार वृत्तियों में वस्तुतः नाट्य प्रतिष्ठित होता है। ये चार वृत्तियाँ हैं-कैशिकी, सात्वती, आरभटी और भारती। (6/143) वृत्त्यनुप्रासः-अनुप्रास का एक भेद। अनेक वर्णों की एक बार आवृत्ति अथवा अनेक वर्गों की स्वरूपतः व क्रमशः अनेक बार आवृत्ति किं वा एक ही वर्ण की एक बार अथवा अनेक बार आवृत्ति होने पर वृत्त्यनुप्रास नामक अलङ्कार होता है-अनेकस्यैकधा साम्यमसकृद् वाप्यनेकधा। एकस्य सकृदप्येष वृत्त्यनुप्रास उच्यते॥ यथा-उन्मीलन्मधुगन्धलुब्धमधुपव्याधूतचूताङ्कुरक्रीडत्कोकिलकाकलीकलकलैरुद्गीर्णकर्णज्वराः। नीयन्ते पथिकैः कथं कथमपि ध्यानावधानक्षणप्राप्तप्राणसमासमागमरसोल्लासैरमी वासराः।। यहाँ प्रथम चरण में एक 'म' वर्ण की एक ही बार तथा 'ध' वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। द्वितीय पाद में क तथा ल वर्णों की अनेक बार उसी क्रम से आवृत्ति हुई है तथा चतुर्थ चरण में श, स वर्गों की एक बार केवल स्वरूपतः आवृत्ति है, क्रमशः नहीं। रसानुकूल रचनारूप वृत्ति से अनुगत होने के कारण इसकी संज्ञा वृत्त्यनुप्रास है। (10/5)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy