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________________ वृत्तगन्धिः 180 वीरः निर्वहण सन्धियाँ तथा सभी अर्थप्रकृतियों का निबन्धन होता है। कोई एक उत्तम, मध्यम अथवा अधम कोटि का नायक कल्पित कर लिया जाता है। जो आकाशभाषित के द्वारा विचित्र प्रकार के कथोपकथन का प्रयोग करता है । शृङ्गाररस अङ्गी होता है, अतः कैशिकी की प्रधानता स्पष्ट है। अन्य रसों का प्रयोग अङ्गरूप में होता है - वीथ्यामेको भवेदङ्कः कश्चिदेकोऽत्र कल्प्यते । आकाशभाषितैरुक्तैश्चित्रां प्रत्युक्तिमाश्रितः । सूचयेद्भूरि शृङ्गारं किञ्चिदन्यान् रसानपि । मुखनिर्वहणे सन्धी अर्थप्रकृतयोऽखिलाः ।। इसके तेरह अङ्ग मनीषियों के द्वारा निर्दिष्ट किये गये हैं-उद्घात्यक, अवलगित, प्रपञ्च, त्रिगत, छल, वाक्केलि, अधिबल, गण्ड, अवस्यन्दित, नालिका, असत्प्रलाप, व्याहार, मृदव। (6/262-63) वीर:- एक रस । वीर को उत्तम प्रकृति वाले व्यक्तियों की उत्साहात्मक चित्तवृत्ति कहा गया है। रौद्र आदि रसों में जहाँ शत्रु को मारने की इच्छा प्रबल रहती है वहाँ वीररस में केवल उन पर विजयप्राप्ति का भाव ही कल्पित रहता है। इसीलिए इसे उत्तम प्रकृति के व्यक्तियों की चित्तवृत्ति कहा जाता है। इसका आलम्बन विजेतव्य ( रावणादि) तथा उसकी चेष्टायें उद्दीपन होती हैं। सहायकों का अन्वेषण आदि इसके अनुभाव तथा धृति, मति, गर्व, स्मृति, तर्क, रोमाञ्च आदि इसके व्यभिचारीभाव होते हैं। इसका वर्ण सुवर्ण के सदृश तथा देवता महेन्द्र होता है- उत्तमप्रकृतिर्वीरः उत्साहस्थायिभावकः । महेन्द्रदैवतो हेमवर्णोऽयं समुदाहृतः । आलम्बनविभावास्तु विजेतव्यादयो मताः । विजेतव्यादिचेष्टाद्यास्तस्योद्दीपनरूपिणः। अनुभावास्तु तत्र स्युः सहायान्वेषणादयः । सञ्चारिणस्तु धृतिमतिगर्वस्मृतितर्करोमाञ्चाः । स च दानधर्मयुद्धैर्दयया च समन्वितश्चतुर्धा स्यात् ।। वीर रस चार प्रकार का होता है- दानवीर, धर्मवीर, युद्धवीर और दयावीर । (3/228) वृत्तगन्धिः - गद्य का एक प्रकार । पद्य के अंशों से युक्त गद्य वृत्तगन्धि कहा जाता है - वृत्तभागयुतं परम् (वृत्तगन्धि ) । इस प्रकार के गद्य से पदयोजना में लालित्य आ जाता है। अ. पु. के अनुसार इसकी शब्दावली अत्यन्त कर्कश नहीं होनी चाहिए - वृत्तच्छायाहरं वृत्तगन्धि नैतत्किलोत्कटम् । इसके उदाहरण में विश्वनाथ कविराज ने स्वरचित 'समरकण्डूलनिबिडभुजदण्डकुण्डलीकृत
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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