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________________ 12 अन्यदनौचित्यम् अपवारितम् रहे-व्यञ्जनं चेद्यथावस्थं सहाद्येन स्वरेण तु। आवर्त्यते। यह प्रायः पाद अथवा पद के अन्त में प्रयुक्त होता है। इन दोनों के उदाहरण क्रमशः इस प्रकार हैं-1) केश: काशस्तबकविकासः, कायः प्रकटितकरभविलासः। चक्षुर्दग्धवराटककल्पं, त्यजति न चेतः काममनल्पम्।। तथा 2) मन्दं श्वसन्तः पुलकं वहन्तः। प्रथम उदाहरण के प्रथम दो चरणों के अन्त में आसः' तथा अन्तिम दो चरणों के अन्त में 'अल्पम्' की आवृत्ति हुई है। द्वितीय उदाहरण पदान्तगत अन्त्यानुप्रास का है। यहाँ 'हसन्तः' और 'वहन्तः' इन दो पदों के अन्त में 'अन्तः' पद की आवृत्ति हुई है। अन्त में प्रयुक्त होने के कारण इसकी संज्ञा अन्त्यानुप्रास है। (10/7) __अन्यदनौचित्यम्-एक काव्यदोष। देशकालादि के विरुद्ध वर्णन भी अनौचित्य के अन्तर्गत आता है। यथा, नायिका का पादप्रहारादि, नायक का कोप, मुग्धा नायिका की धृष्टता, प्रौढ़ा और वैश्या की अतिलज्जा, प्रतिनायक के वंश, वीर्यादि का उत्कर्ष वर्णन, देवताओं के अङ्गों का शिर से आरम्भ करके वर्णन करना, मनुष्यों के अङ्गों का पाँव से आरम्भ करके वर्णन करना आदि। इस प्रकार के वर्णन होने पर काव्य असत्य सा प्रतीत होता है तथा सहृदय उसकी ओर उन्मुख नहीं हो पाता। यह रसदोष है। (7/6) अन्योन्यम्-एक अर्थालङ्कार। दो पदार्थ जब परस्पर एक ही क्रिया को सम्पादित करें तो अन्योन्य अलङ्कार होता है- अन्योन्यमुभयोरेकक्रियायाः करणं मिथः। यथा-त्वया सा शोभते तन्वी, तया त्वमपि शोभसे। रजन्या शोभते चन्द्रश्चन्द्रेणापि निशीथिनी।। यहाँ नायक और नायिका के द्वारा तथा चन्द्रमा और रात्रि के द्वारा परस्पर शोभा उत्पन्न की जा रही है। (10/95) ____अपवादः-विमर्श सन्धि का एक अङ्ग। दोष का कथन अपवाद कहा जाता है-दोषप्रख्याऽपवादः स्यात्। यथा, वे.सं. में युधिष्ठिर और पाञ्चालक के मध्य वार्तालाप में दुर्योधन का दोषकथन किया गया है। (6/110) __अपवारितम्-नाट्योक्ति का एक प्रकार। जो बात किसी एक पात्र से छुपाकर तथा घूमकर किसी दूसरे पात्र से कही जाये, उसे अपवारित कहते हैं-....तद्भवेदपवारितम्। रहस्यं तु यदन्यस्य परावृत्य प्रकाश्यते। (6/161)
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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