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________________ रसाभासः शृङ्गार। रसादिः 151 वीर भयानक, शान्त। भयानक - शृङ्गार, वीर, रौद्र, हास्य, शान्त। शान्त - वीर, शृङ्गार, रौद्र, हास्य, भयानक। बीभत्स - परन्तु विरोधी रसों के सञ्चारीभावों का यदि बाध्य के रूप में वर्णन कर दिया जाये अथवा विरोधी रस का स्मरण के रूप में या साम्य प्रतिपादन के लिए कथन किया जाये तो भी यह दोष नहीं होता। इन विरोधी रसों में किसी एक को दूसरे का अङ्ग बना देने पर भी वह दोष नहीं होता। (3/236) रसादिः-रसादि में रस, भाव, रसाभास, भावाभास, भावोदय, भावसन्धि, भावशबलता तथा भावशान्ति इन आठ का ग्रहण किया जाता है। आस्वादनीयता रूप समान धर्म के कारण ये सभी रस कहे जाते हैं तथा काव्यात्मपद पर प्रतिष्ठित हैं- रसभावौ तदाभासौ भावस्य प्रशमोदयौ। सन्धिः शबलता चेति सर्वेऽपि रसनाद्रसाः।। (3/238) रसान्तरम्-नायिका का मानभङ्ग करने का एक उपाय। घबराहट, भय, हर्षादि के कारण स्वतः ही मान भङ्ग हो जाना रसान्तर कहलाता है-रभसत्रासहर्षादेः कोपभ्रंशो रसान्तरम्। (3/209) रसामासः-अनौचित्यप्रवृत्त रस। रस यदि अनौचित्य से प्रवृत्त हुआ हो तो उसे रसाभास कहते हैं-अनौचित्यप्रवृत्तस्य आभासो रसभावयोः। अनौचित्य से यहाँ अभिप्राय है-भरतादि के द्वारा प्रोक्त रसभाव के लक्षणों का पूर्णरूप से प्रवृत्त न होना अर्थात् विभावादि की न्यूनता के कारण यदि वे रस के एक अंश से ही सम्बन्धित हों। उदाहरणार्थ नायक के अतिरिक्त किसी अन्य में यदि नायिका का अनुराग हो, मुनि अथवा गुरुपत्नी में किसी पुरुष का राग हो, अनेक पुरुषों में यदि नायिका अनुरक्त हो, प्रतिनायक में अनुरक्त हो अथवा किसी नीच पात्र में नायिका की रति वर्णित हो तो यह शृङ्गार में अनौचित्य होता है। कोप का आलम्बन यदि गुरु आदि हों तो रौद्र रस में अनौचित्य होता है। नीचपुरुष में स्थित होने पर शान्त में, गुरु आदि यदि आलम्बन हों तो हास्य में, ब्राह्मणवध आदि दुष्ट कर्म में अथवा नीच पात्र में उत्साह होने पर वीररस में तथा भय के उत्तम पात्र में स्थित होने पर
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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