SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 144 याच्या रतिः याञा-एक नाट्यालङ्कार। स्वयम् अथवा दूत के माध्यम से कुछ माँगने को याच्या कहते हैं-याच्या तु क्वापि याच्या या स्वयं दूतमुखेन वा। यथा, अङ्गद के माध्यम से राम का रावण से वैदेही को माँगना-अद्यापि देहि वैदेहीं दयालुस्त्वयि राघवः। शिरोभिः कन्दुकक्रीडां किं कारयसि वानरान्।। (6/233) युक्ति:-मुखसन्धि का एक अङ्ग। अर्थों का निर्धारण युक्ति कहा जाता है-सम्प्रधारणमर्थानां युक्तिः । यथा वे.सं. में सहदेव और भीम का संवाद। यहाँ भीम के "युष्मान्हेपयति क्रोधाल्लोके शत्रुकुलक्षयः। न लज्जयति दाराणां सभायां केशकर्षणम्।। इस कथन से ऐसा सूचित होता है कि जैसे उसने मानो अपने कर्तव्य का निर्धारण कर लिया है। (6/73) युक्तिः -एक नाट्यालङ्कार। वस्तु के निश्चय को युक्ति कहते हैं-युक्तिरावधारणम्। यथा वे.सं. के इस पद्य में युद्ध में प्रवृत्तिरूप अर्थ का निश्चय है-यदि समरमपास्य नास्ति मृत्योर्भयमिति युक्तमतोऽन्यतः प्रयातुम्। अथ मरणमवश्यमेव जन्तोः किमिति मुधा मलिनं यशः कुरुध्वम्।। (6/238) युग्मकम-दो श्लोकों का वाक्य। दो श्लोकों में यदि वाक्यपर्ति हो तो उसे युग्मक की संज्ञा दी जाती है-द्वाभ्यां तु युग्मकम्।। (6/302) युद्धवीरः-वीररस का एक प्रकार। उत्साहनामक स्थायीभाव जहाँ शत्रु पर विजय की इच्छा से प्रवृत्त हुआ हो, वहाँ युद्धवीर रस होता है। यथा-भो लङ्केश्वर दीयतां जनकजा रामः स्वयं याचते, कोऽयं ते मतिविभ्रमः स्मर नयं नाद्यापि किञ्चिद्गतम्। नैवं चेत्खरदूषणत्रिशिरसां कण्ठासृजा पङ्किलः, पत्री नैव सहिष्यते मम धनुाबन्धबन्धूकृतः।। रावण के प्रति कही गयी इस उक्ति में रावण आलम्बन, उसका मतिविभ्रम, नीति को भूल जाना, सीताहरण आदि उद्दीपन, बाणसन्धान आदि अनुभाव तथा स्मृति, गर्व आदि व्यभिचारीभावों से युद्धवीर नामक रस परिपुष्ट हुआ है। रतिः-शृङ्गाररस का स्थायीभाव। अनुकूल पदार्थ में मन का उन्मुख होना रति कहा जाता है। शृङ्गार के स्थायीभाव के रूप में यह प्रेम नामक वह चित्तवृत्ति है जिसका आलम्बन नायक अथवा नायिका होते हैं क्योंकि
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy