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मृदवम् 142
मौग्ध्यम् काव्य में इसका वर्णन वर्जित है क्योंकि इससे रस विच्छिन्न हो जाता है रसाविच्छेदहेतुत्वान्मरणं नैव वर्ण्यते। परन्तु मृत्युतुल्य दशा का वर्णन किया जा सकता है। यदि मृत्यु आकांक्षित हो तो उसका वर्णन कर देना चाहिए
और यदि मृत्यु के पश्चात् पुनर्जीवित होना हो तो भी उसके वर्णन में कोई दोष नहीं। (3/195, 98)
मृदवम्-एक वीथ्यङ्ग। जहाँ दोष गुण हो जायें अथवा गुण दोष हो जायें वहाँ मृदव नामक वीथ्यङ्ग होता है-दोषा गुणा गुणा दोषा यत्र स्युर्मेदवं हि तत्। यथा, प्रियजीवितता क्रौर्यं निःस्नेहत्वं कृतघ्नता। भूयस्त्वदर्शनादेव ममैते गुणतां गताः।। यहाँ वियोग में प्राण न त्यागने के कारण उत्पन्न जीवनप्रियता आदि दोष प्रिय के पुनर्दर्शन हो जाने के कारण गुण हो गये हैं तथा-तस्यास्तद्रूपसौन्दर्यं भूषितं योवनश्रिया। सुखैकायतनं जातं दु:खायैव ममाधुना।। इस पद्य में रूप सौन्दर्यादिगुण विरह में सन्तापकारी होने से दोष हो गये हैं। (6/275) ___मोट्टायितम्-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार। प्रिय की चर्चा होने पर हृदय के अनुराग से व्याप्त हो जाने, कान खुजाने आदि की क्रियायें मोट्टायित कही जाती हैं-तद्भावभाविते चित्ते वल्लभस्य कथादिषु। मोट्टायितमिति प्राहुः कर्णकण्डूयनादिकम्॥ यथा-सुभग त्वत्कथारम्भे कर्णकण्डूतिलालसा। उज्जृम्भवदनाम्भोजा भिनत्त्यङ्गानि साङ्गना।। (3/119) ।
मोहः-एक व्यभिचारीभाव। भय, दु:ख, आवेग तथा चिन्ता आदि के कारण चित्त का अस्तव्यस्त हो जाना मोह है। इसमें मूर्छा, अज्ञान, पतन, चक्कर आ जाना तथा कुछ दिखाई न देना आदि होता है-मोहो विचित्तता भीतिदुखावेगानुचिन्तनैः। मूर्च्छनाज्ञानपतनभ्रमणादर्शनादिकृत्।। यथा-तीव्राभिषङ्गप्रभवेण वृत्तिं मोहेन संस्तम्भयतेन्द्रियाणाम्। अज्ञातभर्तृव्यसना मुहूर्त कृतोपकारेव रतिर्बभूव।। यहाँ दुःखजन्य मोह से रति की मूर्छा वर्णित है। (3/156)
मौग्ध्यम्-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार। ज्ञात वस्तु का भी अनजाने . भाव से प्रिय से पूछना मौग्ध्य कहलाता है-अज्ञानादिव या पृच्छा प्रतीतस्यापि
वस्तुनः। वल्लभस्य पुरः प्रोक्तं मौग्ध्यं तत्तत्त्ववेदिभिः। यथा-के द्रुमास्ते क्व