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________________ मुखम् 141 मृत्युः में कहा गया है कि--मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम्। इसका उदाहरण आचार्य विश्वनाथ ने यह स्वरचित पद्य-सान्द्रानन्दमनन्तमव्ययमजं यद्योगिनोऽपि क्षणं, साक्षात्कर्तुमुपासते प्रतिमुहुर्ध्यानैकताना: परम्। धन्यास्तां मथुरापुरीयुवतयस्तद्ब्रह्म याः कौतुकादालिङ्गन्ति समालपन्ति शतधा कर्षन्ति चुम्बन्ति च।। दिया है। (6/302) मुखम्-सन्धि का प्रथम भेद। जहाँ अनेक अर्थों तथा रसों को सम्भावित करने वाले बीज की प्रारम्भ नामक कार्यावस्था से संयुक्त होकर उत्पत्ति प्रदर्शित की जाती है वहाँ मुखनामक सन्धि होती है। इसका उदाहरण र.ना. का प्रथमाङ्क है। इसके बारह अङ्ग हैं-उपक्षेप, परिकर, परिन्यास, विलोभन, युक्ति, प्राप्ति, समाधान, विधान, परिभावना, उद्भेद, करण और भेद। कुछ आचार्यों का यह मत है कि इनमें से उपक्षेप, परिकर, परिन्यास, युक्ति, उद्भेद और समाधान मुख्य हैं। अन्य सन्धियों का प्रयोग यथासम्भव किया जाना चाहिए। (6/63) मुग्धा-स्वकीया नायिका का एक भेद। जिस नायिका में नवीन यौवन का सञ्चार हो रहा हो, कामदेव के विकार प्रकट हो रहे हों, रति में सङ्कोचशील हो, मान में चिरस्थायी न हो तथा अत्यन्त लज्जा से युक्त हो, वह मुग्धा कहलाती है। इनमें से किसी एक गुण के होने पर भी वह मुग्धा कही जाती है-प्रथमावतीर्णयौवनमदनविकारा रतौ वामा। कथिता मृदुश्च माने समधिकलज्जावती मुग्धा।। यथा-दृष्टा दृष्टिमधो ददाति कुरुते नालापमाभाषिता, शय्यायां परिवृत्य तिष्ठति बलादालिङ्गिता वेपते। निर्यान्तीषु सखीषु वासभवनान्निर्गन्तुमेवेहते, जाता वामतयैव सम्प्रति मम प्रीत्यै नवोढ़ा प्रिया।। इस पद्य में रति में सङ्कोचशील मुग्धा नायिका का वर्णन है। (3/71) मूढ़ता-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) मूर्छा-प्रवासविप्रलम्भ में काम की दसवीं दशा। वियोगिनी नायिका का संज्ञाहीन हो जाना मूर्छा कही जाती है। मृतिः- प्रवासविप्रलम्भ में काम की अन्तिम दशा। मृति का अर्थ है-मत्यु। काव्य में इसका वर्णन निषिद्ध है। (3/211) मृत्यु:-काम की अन्तिम दशा। मरण का अर्थ मृत्यु होता है परन्तु
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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