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मितार्थ:
मुक्तकम् यौवनेनेव वनिता, नयेन श्रीर्मनोहरा।। इस पद्य में उपमेयभूत श्री के तीन उपमान वर्णित हैं। इसमें कहीं कहीं उपमेय और उपमान दोनों ही प्रस्तुत होते हैं, यथा--हंसश्चन्द्र इवाभाति जलं व्योमतलं यथा। विमला: कुमुदानीव तारकाः शरदागमे।। ( 10/37)
मितार्थः-दूत का एक प्रकार। जो बहुत कम, परन्तु अर्थपूर्ण बोले तथा कार्य को सिद्ध कर दे वह मितार्थ दूत होता है-मितार्थभाषी कार्यस्य सिद्धकारी मितार्थकः। (3/60)
मीलितम्-एक अर्थालङ्कार। तुल्य लक्षण वाली किसी वस्तु से अन्य वस्तु के छिप जाने पर मीलित अलङ्कार होता है-मीलितं वस्तुनो गुप्तिः केनचित्तुल्यलक्ष्मणा। ऐसी समान लक्षण वाली वस्तु कभी स्वाभाविक होती है तो कभी बाहर से आई हुई। यथा-लक्ष्मीवक्षोजकस्तूरीलक्ष्म वक्षःस्थले हरेः। ग्रस्तं नालक्षि भारत्या भासा नीलोत्पलाभया। यहाँ विष्णु की श्याम कान्ति सहज है, अत: सरस्वती तुल्य लक्षण वाली लक्ष्मी के वक्ष की कस्तूरी को नहीं पहचान पायी। दूसरे उदाहरण-सदैव शोणोपलकुण्डलस्य यस्यां मयूखैररुणीकृतानि। कोपोपरक्तान्यपि कामिनीनां मुखानि शङ्का विदधुर्न यूनाम्।। यहाँ नायिकाओं के मुख पर कुण्डलों की लालिमा बाहर से आयी हुई है अत: उनके मुख को कोप से अरुण होने पर युवक पहचान नहीं पाये। (10/115)
मुक्तकम्-गद्य का एक प्रकार। वृत्तगन्धि के अतिरिक्त गद्य के तीनों प्रकार उसमें समास की स्थिति के आधार पर कल्पित किये गये हैं। इनमें से मुक्तक सर्वथा समासरहित गद्य की संज्ञा है-आद्यं (मुक्तकम्) समासरहितम्। वैसे संस्कृत जैसी श्लिष्ट भाषा में सर्वथा समासराहित्य की सम्भावना अत्यल्प ही है, इसीलिए अ.पु. में चूर्ण, उत्कलिका और वृत्तगन्धि रूप तीन ही प्रकार का गद्य माना गया है। इसका उदाहरण आचार्य विश्वनाथ ने यह दिया है-गुरुर्वचसि पृथुरुरसि। (6/310) ____ मुक्तकम्-अर्थ की दृष्टि से निरपेक्ष पद्य। कोई पद्य यदि अर्थ की दृष्टि से दूसरे पद्य से सर्वथा निरपेक्ष हो तो वह मुक्तक कहा जाता है-तेन मुक्तेन मुक्तकम् (तेनैकेन च मुक्तकम्)। अ.पु. में इसके स्वरूप के विषय